Book Title: Shripalmaynamrut Kavyam
Author(s): Naychandrasagar
Publisher: Agamoddharak Pratishthan
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श्रीपाल - मयणामृत
रोगनाशाय नवपदपूजा, तत्प्रभावश्च
वदन्ति गुरवो "वक्तुं साधुभिस्तु न कल्पते " । मन्त्रं तन्त्रं तथा वैद्यं सावद्य - साधनत्वतः ॥ १६२॥ उपायो विद्यते शास्त्रेऽनवद्यो यस्य तथाऽपि हि । आराधनं त्वया भद्रे कार्यं नवपदस्य तु ॥ १६३ ॥ अर्हत्-सिद्धः सुसूरीशः पाठकश्च मुनीश्वरः । दर्शन - ज्ञान - चारित्र - तपांसि सिद्ध-चक्र ॥१६४॥ एतद्विरहितं लोके तत्त्वं नान्यत् शुभावहम् । एतेष्वेव जिनेन्द्रेण मतं जैनं निवेशितम् ॥१६५॥ सिद्धाः सिद्ध्यन्ति ये जीवाः सिद्धिं यास्यन्ति ये पुनः । ते सर्वे सिद्धचक्रस्य ध्यानाज्जानीहि निश्चितम् ॥१६६॥
निष्पन्नं नवभिश्चैतैः सिद्धचक्रं तु कथ्यते । आलिख्य पट्टके ध्येयं धर्मकामै र्यथोदितम् ॥१६७॥ पद्मं तु कर्णिका-मध्यं दलाष्ट परिवेष्टितम् । रचयित्वार्हदादीनि ध्येयान्यत्र पदानि तु ॥ १६८ ॥
मध्यपीठेऽत्र संस्थाप्य मर्हन्तं प्रथमं पदं ।
ż आदौ नमश्चान्ते स्वाहान्तसमलंकृतम् ॥ १६९॥
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काव्यम्
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