Book Title: Shripalmaynamrut Kavyam
Author(s): Naychandrasagar
Publisher: Agamoddharak Pratishthan

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Page 40
________________ काव्यम् श्रीपाल- | प्रामोदन्त जनास्सर्वे नृपोऽकरोत्महोत्सवं । वन्दनमालिका लग्नास्तस्यां पुरि गृहे गृहे ॥२५१॥ मयणामृत-18 लाल्यमानोऽथ बालः स संवर्धते दिवानिशम् । वर्षद्वयमितो यावन् मृतः शूलेन तत्पिता ॥२५२॥ पितुर्मृति वनभ्रमणं च | अङ्कस्थमपि संस्थाप्य राज्ये श्रीपालबालकम् । राज्यं रक्षति नीत्यैव मन्त्रीशो मतिसागरः ॥२५३॥ | श्रीपालस्य पितुर्धात्राऽजितसेनेन कारितः । सेनाभेदस्तु नाशाय रहसि नृप-मन्त्रिणोः ॥२५४॥ | ज्ञात्वा तन्मन्त्रणं शीघ्रं मन्त्रिवार्तानुसारतः । पुत्ररक्षा-कृते नष्टा कमला तु निशामुखे ॥२५५॥ | विनाशे बहवो दोषाः जीवन्प्राप्नोति भद्रकम् । मृतो न जयते शत्रून् जीवन्भद्राणि पश्यति ॥२५६॥ | कोमलापि पदा याति कटीस्थापितपुत्रका । एकाकिनी विपत्त्याप्ता चिन्तयति तु सा यथा ॥२५७॥ भर्तृमृत्यू रमानाशो राज्यभङ्गस्तु मामकः । व गमिष्यामि हा दैव ! त्वमेव शरणं मम ॥२५८॥ एवं चिन्तापरा सा तु यावद् व्रजति कानने । तरुभिर्भीषणैः घोरे कंटक-कर्करान्विते ॥२५९॥ 靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈盟盟 眾飄飄飄飄飄飄飄靈飄飄飄飄飄飄盪盪徽靈靈徽墨飄飄盪器 ___JainEducation international 2010_05 For Private Personal use only www.sainelibrary.org

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