Book Title: Shripalmaynamrut Kavyam
Author(s): Naychandrasagar
Publisher: Agamoddharak Pratishthan

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Page 133
________________ काव्यम श्रीपालमयणामृत 飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄飄靈 | आचारमाचरन्तश्च प्रकाशयन्ति पञ्चकम् । यल्लोकानुग्रहार्थं ये तानाचार्यान्नमाम्यहम् ॥१०५४॥ | विरक्ताविकथाभ्यो ये ऽप्रमत्ता अकषायिनः । धर्मोपदेशसक्ता ये तानाचार्यान्नमाम्यहम् ॥१०५५॥ स्मारणादिचतुष्केन ये रक्षन्ति स्वगच्छकम् । रक्तान् परोपकारे च तानाचार्यान् नमाम्यहम् ॥१०५६॥ | शिवं गतेषु सार्वेषु शासनं धारयन्ति ये । राजन्ते राजवत् तीर्थे तानाचार्यान् नमाम्यहम् ॥१०५७॥ ये षट्त्रिंशत् प्रकारेण षट्त्रिंशत्सद्गुणैः सदा । शोभन्तेऽखिल-लोके ये तानाचार्यान् नमाम्यहम् ॥१०५८॥ | प्रस्तरोपम-शिष्यान् ये कुर्वन्ति सूत्रधारया । प्राज्ञाञ्जगति पूज्यांस्तान् ध्यायामि वाचकान् सदा ॥१०५९॥ | संज्ञाय द्रव्य-दानं ये आ-दिन-मास-जीवनम् । ज्ञानं यच्छन्ति मुक्त्यन्तं ध्यायामि वाचकाँश्च तान् ॥१०६०॥ अज्ञानान्ध-जनानां यन्नेत्रं शास्त्र-शलाकया । प्रोद्घाटयन्ति सम्यक्तान् ध्यायामि वाचकान् सदा ॥१०६१॥ 靈器靈靈飄飄飄飄盪盪盤飄飄飄飄飄飄飄飄飄靈靈靈靈靈靈器 ___JainEducation intereel 2010-05 For Private & Personal use only w.jainelibrary.org

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