Book Title: Shripalmaynamrut Kavyam
Author(s): Naychandrasagar
Publisher: Agamoddharak Pratishthan
View full book text
________________
काव्यम्
श्रीपालमयणामृत
盤靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈
जीवो जगति वर्तते । अहो कर्मविपाकाद्धि किं न जातं न जायते ॥२२७॥ यतः- (शार्दूल-विक्रीडितम्) ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डमाण्डोदरे, विष्णुर्येन दशावतार गहने क्षिप्तः सदा सङ्कटे । रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः । सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे ॥२२८॥ कुले कलङ्कमानीतं जिनधर्मे च दूषणम् । सुताया अपिदिष्टान्ते दुःखं स्यान्नहि तादृशम् ॥२२९॥ कथं न पतितं वज्रं मम कुक्षाविति स्वरैः । दुःखदैः करुणैरुच्चै रुरोद रूपसुन्दरी ॥२३०॥ तत्प्रेक्ष्य मदना वक्ति विहितचैत्यवन्दना । “हर्षस्थानेऽधुना शोको मातस्तव न शोभते" ॥२३१॥ जामाता तव नीरोगी जातो धर्माऽनुभावतः । प्रतीच्यामुदितेऽप्यर्के शीले मा कुरु संशयम् ॥२३२॥ | वक्ति माता कुमारस्य पुण्या कन्या शुभा तव । विकल्पं मा कुरु येन कुक्षिस्ते रत्नदायिका ॥२३३॥ १. दिष्टान्ते = निधने ।
微盟微觀眾蒙靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈激蒙蒙蒙蒙蒙飄飄飄飄
६
Jain Education Intem
2010.05
For Private & Personal use only
Tot
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146