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दूसरा परिच्छेद
राज - कन्याओं की परीक्षा
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इस भारतवर्ष के मध्य खण्ड में मालव नामक एक विख्यात और मनोहर प्रदेश है। किसी समय उज्जयिनी - उज्जैन नामक नगरी उसकी राजधानी थी। वहाँ उन दिनों प्रजापाल नामक राजा राज करता था । उसके दो रानियाँ थी । एक का नाम था सौभाग्य सुन्दरी और दूसरी का नाम था रूप सुन्दरी । सौभाग्य सुन्दरी मिथ्यात्वी और रूपसुन्दरी समकिती थी। कुछ दिनों के बाद दोनों ने एक-एक पुत्री को जन्म दिया। सौभाग्य सुन्दरी की पुत्री का नाम सुरसुन्दरी और रूप सुन्दरी की पुत्री का नाम मैनासुन्दरी रक्खा गया ।
जब इन कन्याओं की अवस्था विद्याभ्यास करने योग्य हुई, तब सौभाग्यसुन्दरी ने अपनी पुत्री के शिक्षण का भार एक वेदशास्त्र - पारंगत ब्राह्मण को सौंप दिया। सुरसुन्दरी ने उस ब्राह्मण पण्डित से चौंसठ कलायें, शब्दशास्त्र, निघंटु और चिकित्सा - शास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की ।
मैना की माताने अपनी पुत्री को जिनमत के ज्ञाता एक पण्डित से शिक्षा दिलाई। उसने अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों का अध्ययन किया और काव्यकला, संगीत, गायन, वादन, ज्योतिष, वैद्यक तथा विविध कलाओं का ज्ञान सम्पादन किया। जैन
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