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नारायण के रूप में जन्मा। यहां से मरण कर अनंतवीर्य तो प्रथम नरक गये व अपराजित अच्युत स्वर्ग में इन्द्र बने। बाद में विजय के जीव ने नरक से निकलकर व्योम बल्लभ नगर के राजा मेहवाहन पत्नी मेघमालिनी के घर पुत्र के रूप में जन्म लिया। उनका नाम मेघनाद रखा गया।
उधर अमिततेज का जीव अच्युत स्वर्ग से चयकर रत्नसंचपुर नरेश श्री क्षेमंकर के यहां बज्रायुध नाम का पुत्र हुआ। मेघनाद मरण कर अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र बना तथा वहां से चयकर इन्हीं क्षेमंकर नरेश के यहां सहस्त्रायुध नामक पुत्र के रूप में जन्मा । बाद में क्षेमंकर महाराज ने बज्रायुध को राज्य दे दिया तथा वे तपश्चरण कर मोक्ष चले गये। बाद में अमिततेज का जीव बज्रायुध व विजय का जीव सहस्त्रायुध भी मुनि बन गये, समाधिमरण कर अघोर विमान में उत्तम देव हुए। बाद में अमितगति का जीव जो बज्रायुध था, विमान से चयकर पुंडरीकनी नगरी के राजा घनरथ के यहां मेघरथ नाम का पुत्र हुआ तथा विजय का जीव जो सहस्त्रायुध था, इन्हीं नरेश के यहां मनोरमा रानी के उदर से जन्म लेकर द्रढरथ नाम के पुत्र के रूप में जन्मा। बाद में मेघरथ का विवाह प्रियमित्रा व मनोरमा से तथा द्रढरथ का विवाह मनमोहनी व सुमति नाम की कन्याओं से हुआ। पर बड़े होने पर अपने पिता केवली धनरथ के उपदेश सुनकर दोनों विरक्त हो गये। उन्होंने बड़े पुत्र मेघसेन को राज्य का भार सौंप दिया। दोनों मुनि घोर तत्पश्चरण कर सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में इन्द्र, प्रतीन्द्र बने । मेघरथ का जीव जो पूर्व भव में अमितगति था, सर्वार्थ सिद्धि देवलोक से चयकर कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नरेश महाराज विश्वसेन के घर महारानी ऐरादेवी के गर्भ में पधारे, जहां गर्भ के 6 माह पहले से ही वहां दैवीय रत्नों की वृष्टि हो रही थी। जन्म के बाद सौधर्म इन्द्र उस नन्हें बालक को सुमेरू पर्वत की पांडुक शिला पर ले गया; जहां उसने देवी-देवताओं के साथ भक्तिभाव पूर्वक 1008 कलशों से तीर्थंकर बालक का अभिषेक किया व नृत्योत्सव कर
संक्षिप्त जैन महाभारत 17