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श्रीकृष्ण को बहुत प्यारा था। अतः वे उसके चले जाने से काफी दुःखी हुए। बलदेव व श्रीकृष्ण ने द्वारिका में आकर यह घोषणा करवा दी कि सभी मदिरा बनाने के साधन एवं समस्त मदिरा जो उनके राज्य में है, उसे शीघ्र ही नष्ट कर दिया जावे। राज्य की संपूर्ण मदिरा कदंब वन के कुंडों में फेंक दी गई। किन्तु वह मदिरा अश्यपाक विशेष के कारण उन कुंडों में भरी रही। श्रीकृष्ण ने अपने राज्य में यह घोषणा भी करवा दी कि जो भी भगवान नेमिनाथ के मत में दीक्षित होकर तप करना चाहें वे ऐसा कर सकते हैं। श्रीकृष्ण की इस घोषणा को सुनकर प्रद्युम्न कुमार, भानु कुमार आदि को लेकर अनेक यादव कुमार भगवान नेमिनाथ की शरण में जाकर दीक्षित होकर मुनि बनकर तप करने लगे। रूक्मणि, सत्यभामा आदि आठ पटरानियों ने भी अपने पति से आज्ञा प्राप्त कर अपनी पुत्रवधुओं एवं सौतों के साथ आर्यिका दीक्षा धारण कर ली तथा वे भी तपस्या में लीन हो गईं। बलदेव का भाई जो उनका सारथी भी था, ने भी मुनिदीक्षा धारण कर ली। बाद में भगवान नेमिनाथ भी पल्लव देश की ओर विहार कर गये।
168 संक्षिप्त जैन महाभारत