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नहीं हो सका था। बाद में राजा जितशत्रु ने दीक्षा ग्रहण कर ली थी। हरिवंश नरेश जितशत्रु ने घोर तत्पश्चरण कर संपूर्ण पूर्व संचित कर्मों का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया था। वे इसी भव से मोक्ष चले गये थे। इस प्रकार हरिवंश की कथा पूर्ण होती है।
लेखक का मत- समुद्रविजय आदि 9 भाई, देवकी के युगलिया 6 पुत्र, शंबू कुमार, प्रद्युम्न कुमार एवं अनिरूद्ध आदि मुनिश्वर भी गिरनार/उर्जयंत पर्वत से मोक्ष गये थे। इन सभी मुनिश्वरों के चरणचिह्न पर्वत की दूसरी, तीसरी व चौथी टोंक पर आज भी स्थित हैं। किन्तु विगत कुछ वर्षों से वहां हिंदू संप्रदाय के साधुओं ने इन टोंको पर व अन्यत्र भी अनेक अनाधिकृत नवीन निर्माण कर वहां देवी-देवताओं को विराजमान कर दिया है। वे गिरनार क्षेत्र के मूल इतिहास को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। लेखक ने जब 1960 में गिरनार तीर्थ क्षेत्र की यात्रा की थी, तब तक गिरनार तीर्थ क्षेत्र पर इन साधुओं ने किसी प्रकार का निर्माण नहीं किया था और न ही इनका इस तीर्थ क्षेत्र पर कोई हस्तक्षेप था किन्तु आज लगभग सभी टोंकों पर इनका अनाधिकार कब्जा है। वे जैन तीर्थ यात्रियों को यहां इन टोंकों पर विधि-विधान पूर्वक दर्शन एवं पूजन करने से रोकते हैं। ऐसा लेखक ने सन् 2010 में अपनी चौथी यात्रा के दौरान स्वयं महसूस किया।
संक्षिप्त जैन महाभारत. 179