Book Title: Sankshipta Jain Mahabharat
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 184
________________ कालक्रम के आधार पर काल-विभाजन, अनेकों ऐसे अज्ञात अथवा अल्पज्ञात गद्यकारों की साहित्यिक विशेषताओं का उद्घाटन जिनके विषय में हिन्दी साहित्य के प्रमुख इतिहास ग्रंथ या तो मौन हैं अथवा भ्रांतिपूर्ण परिचय प्रस्तुत करते हैं। आठ शताब्दियों की विपुल गद्य-सम्पदा का अनेक परिप्रेक्ष्यों में निरीक्षण, परीक्षण और मूल्यांकन। खड़ी बोली गद्य के भाव, भाषा और शैली पर ब्रज भाषा-गद्य के प्रभाव का विस्तृत विवेचन। प्राकृत-संस्कृत का समानांतर अध्ययन डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव इस कृति में प्राकृत-संस्कृत के समानांतर तत्वों का सांगोपांग अध्ययन है। प्राकृत वाङ्मय में प्राप्त उन सारस्वत तत्वों की ओर संकेत है, जिनसे संस्कृत वाङ्मय के समानांतर अध्ययन में तात्विक सहयोग की सुलभता सहज संभव है। सप्तसंधान महाकाव्य : समीक्षात्मक अध्ययन डॉ. श्रेयांस कुमार जैन सप्तसंधान श्लिष्ट काव्य की अद्भुत रचना है। सात भिन्न कथाओं का प्रवाह एक साथ अविच्छिन्न गति से प्रवाहित है। ग्रंथ में सात अध्याय हैं-सप्तसंधानान्तर्गत भौगोलिक, धार्मिक एवं दार्शनिक शब्दावली, सप्तसंधान-ऐतिहासिक विवेचन, ग्रंथ और ग्रंथकार, कथावस्तु, कथास्त्रोत, साहित्यिक परिशीलन, कौशल वर्णन, तुलनात्मक अध्ययन। एक विशिष्ट संग्रहणीय शोध-प्रबंध। शताब्दी पुरुष सहजानन्द वर्णी - व्यक्ति और विचार आचार्य अशोक सहजानन्द पूज्य सहजानन्द वर्णी जी ने अपनी विराट् साहित्यिक साधना के माध्यम से जो विरासत समर्पित की है वह केवल जैन साहित्य के लिए ही गौरवास्पद नहीं है, अपितु संस्कृत-प्राकृत भाषाओं के विपुल रत्न भंडार में प्रतिनिधि रत्नों के रूप में प्रतिष्ठित है। प्रस्तुत ग्रंथ में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पचास से अधिक मूर्धन्य विद्वानों के आलेख संकलित हैं। सत्य सुदर्शन प्रणाम मीना ओम् प्रस्तुत कृति ओजस्वी, सकारात्मक और प्रेरक उद्बोधनों का विशिष्ट संकलन है। इस कृति की पंक्ति-पंक्ति पठनीय है। लेखिका का आह्वान है-'मानव जीवन एक उत्सव है। इसे चिरस्थायी उल्लास में परिवर्तित कर दे।' पुस्तक पढ़ने के बाद आप भी यही कहेंगे। आख्या डॉ. अपर्णा सारस्वत साहित्यिक शोध लेखों का एक विशिष्ट संकलन। इसमें प्रबुद्ध लेखिका ने भक्तिकाल 182 - संक्षिप्त जैन महाभारत

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