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देखकर कंस ने प्रमुख मल्ल चाणूर व उसके साथ मुष्टिक मल्ल को भी मल्ल युद्ध के लिए भेज दिया। तब बलदेव ने मुष्टिक मल्ल को मार डाला व श्रीकृष्ण ने चाणूर मल्ल (जो श्रीकृष्ण से दोगुना था) को वहीं मार दिया। यह दृश्य देखकर कंस अपने आपको रोक न सका व वह श्रीकृष्ण को अपना सही दुश्मन मानकर तलवार लेकर स्वयं युद्ध भूमि में आ गया। परन्तु श्रीकृष्ण ने बिना समय गंवाये कंस के हाथ से तलवार छीन ली व उसे पृथ्वी पर पटक दिया। फिर श्रीकृष्ण ने कंस को उठाकर पत्थर पर पछाड़ दिया। जिससे कंस वहीं मर गया। यह देखकर श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्कराने लगे। तभी कंस की सेना श्रीकृष्ण की ओर तेजी से बढ़ी पर बलभद्र ने उसे छिन्न-भिन्न कर दिया। यह दृश्य देखकर जरासंध के द्वारा भेजी गई सेना युद्ध को तत्पर हुई, पर तभी समस्त यदुवंशियों की सेना व श्रीकृष्ण पक्ष के राजाओं की हुँकार से वह भी भाग खड़ी हुई, तब दोनों भाई अपने पिताश्री के महलों में गये व वहां उन्होंने दादा समुद्रविजय आदि की पूजा की व उनका आशीर्वाद लिया। यह सब जानकर व अपने महान पुत्र को अपने सामने देखकर वसुदेव व देवकी अनुपम सुख को प्राप्त हुए, व वह कन्या भी जिसकी नाक को कंस ने मसलकर चपटी कर दी थी, अपने भाई श्रीकृष्ण को देखकर अति प्रसन्न हुई । तत्पश्चात श्रीकृष्ण व बलदेव ने उग्रसेन आदि को-जो गोपुर द्वार के ऊपर बंदी थे - मुक्त कर दिया व उन्हें फिर से समारोह पूर्वक मथुरा का शासक बना दिया। यह सब स्वप्न की भांति होता देखकर जीवद्धसा अपने पिता जरासंध के पास राजगृह चली गई।
वसुदेव की विजयसेना रानी से अक्रूर व क्रूर नाम के दो पुत्र हुए थे। श्यामा रानी से ज्वलन व अग्निवेग, गंधर्वसेना से वायुवेग, अमितवेग, व महेंद्रगिरि, मंत्री पुत्री पदमावती से दारू, वृद्धार्थ व दारूक, नीलेश्या से सिंह व मतंगज, सोमश्री से नारद व मरूदेव, मित्रश्री से सुमित्र, कपिला से कपिल, दूसरी पदमावती से पदम व पदमक, अश्वसेना से अश्वसेन, पौंड्रा से पौंड्र, रत्नावती से रत्नगर्भ व सुगर्भ, सोमदत्त की पुत्री
संक्षिप्त जैन महाभारत 69