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को रसोइये से कहा। तब रसोइया राजा की आज्ञा पाकर निडर होकर नगर में खेलने गये बालकों में से पीछे रह जाने वाले बालक को पकड़कर उसका मांस राजा को खिलाने लगा। बच्चों की निरंतर हो रही कमी से नगर में अशांति फैल गई व लोग संतर्क हो गये। तब एक दिन वह रसोइया नगरवासियों की सर्तकता से एक बालक के साथ पकड़ा गया। खुलासा होने पर प्रजा ने राजा को राजगद्दी से उतार दिया। परंतु वह बाहर वन में जाकर रहने लगा व वहीं से शासन चलाकर लोगों की हत्या कर खाने लगा। तब प्रजा ने उपाय स्वरूप प्रतिदिन एक व्यक्ति को उसे देने का निश्चय किया। आज मेरे पुत्र की बारी है, अतः मैं करुण क्रंदन कर रही हूँ। मेरे पुत्र को अब कौन बचायेगा। मेरा यह इकलौता पुत्र है। राजा बक विगत 12 वर्षों से ऐसा कर रहा है। कुन्ती को यह सब जानकर अत्यन्त दुख हुआ व वह भी वैश्य वधू के साथ रोने लगी व उसे समझाने लगी कि तुम डरो मत। मैं तुम्हारे पुत्र की अवश्य रक्षा करूंगी। तब कुन्ती ने वापिस आकर अपने पुत्रों को राजा बक का पूरा वृतांत सुना दिया व कहा कि उसके इकलौते पुत्र की रक्षा हमें करनी चाहिए व कोई ऐसा उपाय भी सोचना चाहिए ताकि वह नरभक्षी हमेशा हमेशा के लिए मांसाहार त्याग दे। हमें इस वैश्य के घर रूकने का ऋण भी चुकाना है।
यह चर्चा चल ही रही थी कि तभी नगर कोटवाल वैश्य पुत्र को लेने आ गया। तभी भीम बोले-आज वह बालक नहीं, मैं स्वयं बक के पास जाऊंगा व अपनी बलि देकर उसे प्रसन्न करूंगा। जब भीम बक के पास पहुँचा तो उसने अपने साथियों के साथ घनघोर निनाद किया व भीम से भिड़ गया। तब भीम ने उसे उठाकर भूमि पर पटककर मुष्टि से प्रहार किया व फिर उसे उठाकर चकरी की भांति घुमाने लगा। भीम बक को घुमा घुमाकर पटकना ही चाहता था कि तभी वह भीम से क्षमा मांगने लगा। तब भीम ने उससे वचन लिया कि वह जीवन में कभी भी नर मांस का भक्षण नहीं करेगा व उसकी आज्ञा का हमेशा पालन करेगा। बक ने घबराकर
संक्षिप्त जैन महाभारत.89