________________
की रक्षा के लिए जलंधर आकर युद्ध करने लगा। जलंधर के पश्चात् रूप्य कुमार ने आकर अर्जुन से युद्ध किया। तब अर्जुन ने उससे कहा कि तुम श्रेष्ठ वीर पुरुष होकर भी अन्यायी का पक्ष क्यों लेते हो? तब रूप्य कुमार ने कहा कि श्रीकृष्ण दूसरों की कन्याओं का अपहरण करता है तो क्या तुमने कभी श्रीकृष्ण के दुष्कृत्यों पर भी विचार किया? तब अर्जुन ने यह सुनकर रूप्य कुमार को युद्ध के लिए ललकारा व कहा कि मैं अपने बाणों से अभी न्याय-अन्याय का निर्णय किये देता हूँ। ऐसा कहकर अर्जुन ने क्षण भर में ही बाणों की वर्षा कर रूप्य कुमार को अधीर कर दिया। शत्रु पक्ष की चक्रव्यूह रचना को भेदकर अर्जुन आदि बहुत उल्लासित थे। युद्ध में उन्हें विजयश्री मिली तथा वे अपनी सेना में जा मिले। कुछ समय पश्चात् पुनः युद्ध प्रारंभ होने पर युधिष्ठिर ने जरासंध के प्रमुख योद्धा हिरण्य को तमाम सैनिकों के साथ परास्त कर निहत कर दिया। हिरण्यनाभ का वध देखकर मानो सूर्यदेव अस्ताचल को प्रयाण कर गये। तभी रात्रि आगमन पर नियमानुसार युद्ध स्थगित हो गया। युद्ध में निहत वीरों का यथायोग्य दाह-संस्कार कर सब अपने-अपने शिविरों में चले गये।
अपने सेनापति के मारे जाने पर रात्रि में जरासंध ने अपने चतुर मंत्रियों के साथ परामर्श कर सेनापति के पद पर वीर सेवक को नियुक्त कर दिया। रात्रि में ही दुर्योधन ने पांडवों के पास एक चतुर संदेशवाहक दूत के द्वारा संदेश भेजा कि तुम लोगों के गुणों व शासन प्रणाली की सामान्यजन जितनी प्रशंसा करें पर मैंने तुम लोगों को जीवित न रहने देने की प्रतिज्ञा कर रखी है, उसमें कदापि परिवर्तन नहीं होगा। तब उस दूत के वचनों को सुनकर प्रत्युत्तर में वीर पांडवों ने कहा- अपने स्वामी से जाकर कह दो कि वह यमपुरी प्रस्थान करने के लिए प्रस्तुत हो जावें। जरासंध के साथ वह भी यमराज का अतिथि होगा। दूत ने पांडवों के वचनों को जस का तस जाकर कह सुनाया। सूर्योदय हुआ, रणभेरियां बजने लगीं। समर भूमि में वीर योद्धा एकत्रित होने लगे।
126 - संक्षिप्त जैन महाभारत