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बीच चतुराई से भरा मनोहर वार्तालाप हुआ। सत्यभामा के यह कहने पर कि आप मेरे साथ अपनी प्रिया के समान क्रीड़ा क्यों करते हैं। इसके उत्तर में नेमिनाथ बोले कि क्या तुम मेरी प्रिया/इष्ट नहीं हो। तब सत्यभामा ने प्रति उत्तर में कहा कि यदि 'मैं आपकी प्रिया हूँ, तो आपके भाई श्रीकृष्ण किसके पास जायेंगे। उत्तर में नेमिनाथ ने कहा कि वे कामिनी के साथ जायेंगे। जब सत्यभामा ने पूछा कि वह कामिनी कौन है, तब नेमिनाथ बोले कि क्या आप नहीं जानतीं। तब सत्यभामा ने नेमिनाथ से कहा कि आपको सभी सीधा कहते हैं, पर आप तो बड़े कुटिल हैं। विनोद करते-करते स्नान के पश्चात् नेमिनाथ ने सत्यभामा से कहा कि हे नील कमल से नेत्रों वाली- मेरा यह स्नान वस्त्र ले और इसे धो डाल। तब सत्यभामा बोली कि मैं महान पुरुष श्रीकृष्ण की स्त्री हूँ, किसी की दासी नहीं। जब वे भी मुझे ऐसा आदेश नहीं देते, तो आप मुझे ये आदेश कैसे दे सकते हैं। क्या आप श्रीकृष्ण हैं? क्या आपमें उन जैसा साहस है? ऐसा उल्लेख उत्तर पुराण में है। किन्तु इसके विपरीत हरिवंश एवं पांडव पुराण के अनुसार यह मधुर चर्चा सत्यभामा के साथ नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी जाम्बवती के साथ हुई थी।
सत्यभामा/जाम्बवती के ये कटु वचन सुनकर नेमिनाथ सीधे नगर की ओर गमन कर गये। वे सीधे श्रीकृष्ण की आयुधशाला में गये व वहां जाकर नागशैया पर चढ़ गये। उन्होंने उनका सारंग नाम का धनुष चढ़ा दिया व नासिका से उनके पांचजन्य शंख को फूंक दिया। तब सभी घबरा गये। श्रीकृष्ण ने अपनी तलवार निकाल ली, किन्तु जब वे अपनी आयुधशाला में पहुँचे, तो उन्होंने नेमिनाथ को नागशैया पर चढ़ा देखा। यह देखकर श्रीकृष्ण ने नेमिनाथ का आलिंगन किया व उन्हें प्रणाम कर उनके बल-पराक्रम की प्रशंसा करने लगे। इसके बाद, घटना का विस्तार से पता करने पर श्रीकृष्ण को मालूम चला कि नेमिनाथ का चित्त राग से युक्त हुआ है। उन्हें कामोद्दीपन हुआ है, अतः अब नेमिनाथ का विवाह करना चाहिए। उन्होंने नेमिनाथ से चर्चा कर उन्हें विवाह हेतु तैयार कर लिया।
160 - संक्षिप्त जैन महाभारत