Book Title: Sankshipta Jain Mahabharat
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 137
________________ हो गया कि अभिमन्यु के साथ घोर अन्याय किया गया है। भला एक वीर तरुण के ऊपर इतने बड़े-बड़े शूरवीरों का एक साथ आक्रमण क्या कभी उचित कहा जा सकता है? तभी अभिमन्यु को तृषा पीड़ित देखकर कर्ण ने उसे शीतल जल का पान कराया। पर उस वीर ने यह कहकर जलपान को अस्वीकार कर दिया कि मैं अब उपवास व्रत करूंगा व पंच परमेष्ठी का स्मरण करते हुए अपने प्राण विसर्जित करूंगा। यह सुनकर द्रोणाचार्य आदि क्षमाशील लोग अभिमन्यु को एक पवित्र एवं निर्जन स्थान में ले गये। वहां पहुंचकर अभिमन्यु ने आत्म-स्वरूप का चिंतवन करते हुए सबसे क्षमा प्रार्थना की एवं सबको क्षमा प्रदान की। इस प्रकार द्वेष रहित होकर प्राणों का त्याग कर अभिमन्यु स्वर्ग लोक चला गया। दुर्योधन आदि कौरव अभिमन्यु के निधन का समाचार सुनकर अति प्रसन्न हुए। पर सांयकाल हो जाने के कारण युद्ध स्थगित कर सभी अपने-अपने स्कंधावरों में चले गये। __ अभिमन्यु के वध के समाचार से श्रीकृष्ण पांडवों की सेना में आतंक फैलकर शीघ्र ही शोक का साम्राज्य छा गया। युधिष्ठिर ने जब इस दु:खद समाचार को सुना तो वह उखड़े हुए वृक्ष की भांति पृथ्वी पर गिर पड़े। अर्जुन को इस समाचार से मर्मान्तक पीड़ा हुई। भला वह कौन सा वज्रहृदय पिता होगा; जिसका अंत:करण अभिमन्यु समान कुलदीपक पुत्र की मृत्यु से द्रवीभूत नहीं हो उठेगा? वह कई बार मूर्छित हुए। तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से आकर कहा कि आज बड़ा ही खेद का विषय है कि आज केवल तुम्हारा पुत्र ही निहित नहीं हुआ प्रत्युत एक शूरवीर सेनापति का निधन हो गया। इससे हमारी सेना अनाथ सी हो गई है किन्तु हमें धैर्यपूर्वक इस भीषण आघात को सहन कर लेना चाहिए। क्योंकि हमारे विह्वल होने से दुश्मन की सेना का साहस बढ़ेगा। हमें तो अब सर्वप्रथम ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे कि अभिमन्यु के हंता को इस दुष्कर्म का भयंकर परिणाम भोगना पड़े। अभिमन्यु की माता सुभद्रा इस दुःसंवाद को सुनते ही गंभीर आघात से विक्षिप्त सी हो गई। श्रीकृष्ण व अर्जुन ने उसे संक्षिप्त जैन महाभारत - 135

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