Book Title: Sankshipta Jain Mahabharat
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 152
________________ नागपास का प्रयोग किया, तो श्रीकृष्ण ने गरुणास्त्र का प्रयोग कर उसके प्रभाव को विनष्ट कर दिया। इसके पश्चात् जरासंध ने बहुरुपिणी, स्तंभनी, चक्रिणी एवं शूला आदि बहुत सी विद्याओं का स्मरण कर एवं उनके आगमन पर उन्हें श्रीकृष्ण की सेना में प्रवेश कराकर संपूर्ण शत्रु सेना को चेतनाहीन करा दिया। तब श्रीकृष्ण ने णमोकार महामंत्र के प्रभाव से उन विद्याओं के प्रभाव को नष्ट कर दिया। जब जरासंध ने भयंकर वर्षा करने वाले संवर्तक अस्त्र को छोड़ा, तो श्रीकृष्ण ने उसका निवारण महाश्वसन नामक अस्त्र को छोड़कर कर दिया। जब जरासंध ने वायव्य अस्त्र छोड़ा, तो श्रीकृष्ण ने अंतरिक्ष अस्त्र से उसका निवारण कर दिया। जब जरासंध ने आग्नेय बाण छोड़ा तो श्रीकृष्ण ने वारुणास्त्र से उसे निष्क्रिय कर दिया। जब जरासंध ने वैरोचन अस्त्र छोड़ा, तो श्रीकृष्ण ने उसके प्रभाव को माहेन्द्र अस्त्र से निष्क्रिय कर दिया। इसी प्रकार जरासंध के राक्षस बाण को श्रीकृष्ण ने नारायण अस्त्र से, उसके तामस अस्त्र को भास्कर अस्त्र से तथा उसके अश्वग्रीव अस्त्र को अपने ब्रह्म शिरस अस्त्र से उसका निराकरण कर दिया। जब जरासंध के सभी प्रयास विफल हो गये तो उसने अपना धनुष फेंक दिया एवं यक्षों द्वारा रक्षित चक्ररत्न का चितवन किया। चक्र रत्न तत्क्षण ही जरासंध के हाथों में आ गया। वह चक्ररत्न सूर्य के समान तेजस्वी था। उससे चतुर्दिक प्रकाशमयी किरणें विकीर्ण हो रही थीं। जरासंध ने उसके आगमन पर सर्वप्रथम उसकी पूजा की एवं तत्पश्चात उसको श्रीकृष्ण के ऊपर चला दिया। उस चक्ररत्न की प्रखर किरणों को कोई सहन नहीं कर सकता था। फलतः सभी भयभीत होकर पलायन करने लगे। इसके पहले उसे नष्ट करने के लिए श्रीकृष्ण के पक्ष के राजाओं ने अनेक चक्र छोड़े पर सब निष्फल हुए। तब वहां नेमिनाथ तीन ज्ञान के धारी निश्चल रूप से श्रीकृष्ण के पास खडे रहे। जब चक्ररत्न बिना रूके धीरे-धीरे श्रीकृष्ण व नेमि प्रभु की 150 - संक्षिप्त जैन महाभारत

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