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प्रकार का युद्ध चल ही रहा था कि विद्याधर ने हिडम्बा का हाथ पकड़कर कहा- हे कामिनी! मेरे रहते हुए इतना साहस अन्य किसमें है, जो तुमसे विवाह कर ले। तभी भीम ने उस विद्याधर को एक ही चोट से धराशायी कर दिया। जब भीम ने पुनः पिशाच पर आक्रमण किया; तभी धराशायी हुआ वह विद्याधर पुनः चैतन्य होकर बोला- पिशाचराज तुम हट जाओ इतना कहकर वह भीम से फिर भिड़ गया। तब भीम उसे पटक कर उसकी पीठ पर पैर रखकर खड़ा हो गया। जिससे उस विद्याधर का मद सर्वथा विनष्ट हो गया व वह भीम से क्षमा याचना कर तपस्या हेतु एकांत स्थान की ओर भाग गया। पिशाच भी परास्त होकर भाग गया। तभी युधिष्ठिर आदि की नींद खुल गई। सारा वृतांत जानकर युधिष्ठिर व कुन्ती ने भीम से उस कन्या के विवाह की अनुमति दे दी। पांडव कुछ दिनों तक राजा सिंहघोष के मेहमान रहे। कुछ समय पश्चात् भीम व हृदयसुन्दरी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। भीम के पुत्र का नाम घटुक रखा गया।
हिडम्बा को वहीं छोड़कर पांडव माता कुन्ती के साथ वहां से चलकर भीम नामक वन में पहुँचे। जहां भीमासुर नाम का एक देव निवास करता था। वह देव दुर्जेय, महादुष्ट व उइंड था। वह पांडवों को देखकर बोला- आपने इस वन भूमि को अपने पगों से अपवित्र करने का साहस कैसे किया? यह सुनकर भीम ने उसे ललकारा व उस देव के मान व अभिमान को चूर्ण कर उसे परास्त कर दिया। तब वह देव भीम को नमस्कार कर वहां से चला गया। पांडव माता कुन्ती के साथ विहार करते हुए श्रुतपुर नगर पहुँचे व वहां जिनदर्शन कर एक वैश्य के घर में रूक गये। रात्रि में घर के अंदर से एक स्त्री की रोने की आवाज सुनकर कुन्ती अंदर गई। तो वहां वैश्य पत्नी रो रही थी। ___कुन्ती के पूछने पर वह बोली- यहां का राजा मांस-भक्षी है। एक दिन जानवर का मांस न मिलने पर रसोइये ने उसे श्मशान से उठकार लाये गये बच्चे का मांस खिला दिया। राजा को यह बहुत पसंद आया व ऐसा ही मांस रोज पकाने
88 - संक्षिप्त जैन महाभारत