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रचना की है। तो वसुदेव ने भी इसके भेदन हेतु गरुड़ व्यूह की रचना अपनी सेना में कर डाली। गरुड़ व्यूह में गरुड़ मुख पर 50 लाख यादव सैनिक यादव नरेशों के साथ तैनात किये गये। कृष्ण व बलदेव गरुड़ के मस्तक पर नियुक्त किय गये थे। महारथियों को मस्तक के आसपास चारों ओर व अतिरथों को पृष्ठरक्षा हेतु पीछे नियुक्त किया गया। एक करोड़ रथों के साथ भोज नरेश गरूण रचना के पृष्ठ भाग पर व इनकी भी पृष्ठरक्षा हेतु अनेक रणवीर नरेश नियुक्त किये गये। समुद्रविजय को गरुड़ रचना के दाहिने पंख पर नियुक्त किया गया। जिनके आसपास पच्चीस लाख रथों से युक्त राजा थे। बलदेव के पुत्र व पांडवों को गरूण के बांये पंख पर नियुक्त किया गया। जिनकी सहायता हेतु यहां भी पच्चीस लाख रथों से युक्त राजा थे। इस गरूण व्यूह की रक्षा हेतु भी रक्षक नियुक्त किये गये थे। वसुदेव के शूरवीर पुत्र अनावृष्टि को सेना का सेनापति नियुक्त किया गया। वहीं जरासंध ने हिरण्यनाभ को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया।
युद्ध प्रारंभ हो चुका था। हाथी हाथियों से, रथ रथों से, घोडे घोडों से व पैदल पैदल सैनिकों पर पिल पडे। खड़गों से शिरच्छेद किये जा रहे थे। भालों से वक्षस्थल विद्ध किये जा रहे थे एवं गदाओं से भीषण प्रहार किये जा रहे थे। इस घमासान युद्ध में जब यादव सेना हतोत्साहित होने लगी, तो श्रीकृष्ण के पुत्र शंबूकुमार ने आगे बढ़कर सैनिकों को धैर्य प्रदान किया। इस वीर से युद्ध करने क्षेत्रविद्ध नाम का विद्याधर आकर युद्ध करने लगा। पर शंबू कुमार ने शीघ्र ही उसे रथ विहीन कर दिया। तब उसके स्थान पर एक अन्य विद्याधर आकर युद्ध करने लगा। शंबूकुमार ने उसकी भी यही दशा की। तब कालसंदर नाम का एक महायोद्धा शंबूकुमार से युद्ध करने आ गया। तब प्रद्युम्न ने शंबूकुमार को अलग कर उससे युद्ध प्रारंभ कर दिया। अविच्छिन्न वाणों की वर्षा होने लगी। प्रद्युम्न ने शीघ्र ही प्रज्ञप्ति नाम की विद्या का प्रयोग कर उसे बंदी बनाकर अपने रथ में डाल लिया। तब
संक्षिप्त जैन महाभारत - 123