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सेना, उग्रसेन व इक्ष्वाकुवंशी मेरू की एक-एक अक्षोहिणी सेना, राष्ट्रवर्धन नरेश सिंहल देश व राजा पदमरथ की आधी-आधी अक्षोहिणी सेना, शकुनि के भाई चारूदत्त की चौथाई अक्षोहिणी सेनाओं के साथ वर्वर, यमण, आभीर, काम्बोज व द्रविण राजाओं की सेनायें श्रीकृष्ण के पक्ष में थीं। यादवों की सेना में कुछ अतिरथ, कुछ महारथ, कुछ समरथ, कुछ अर्धरथ व शेष नरेश रथी थे।
नेमि, बलदेव व श्रीकृष्ण अतिरथ थे अर्थात् योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ थे। समुद्रविजय, वसुदेव, पांचों पांडव, कर्ण, रूक्मी, प्रद्युम्न, दृष्टद्युम्न, शल्य, हिरण्यनाभ, सारण आदि महारथी होने से ये सभी शस्त्रविद्या व शास्त्रार्थ में निपुण थे। महाशक्तिवान व महाधैर्यशाली थे। समुद्रविजय व शेष आठ भाई, शंब, भोज, द्रुपद, सिंहराज, शल्य, वज्र, पौंड, पदमरथ, आदि यह सभी समरथी थे। अर्थात् युद्ध में समान शक्ति के धारक थे। महानेमि, धर, अक्रूर, निषध, दुर्मुख, कृतवर्मा, विराट, यवन, भानु आदि अर्धरथी थे व शेष सभी राजा रथी थे। ऐसे राजा-महाराजा दोनों पक्षों की सेनाओं में थे। जरासंध के पास भी अनेक अक्षोहिणी सेना थी।
तभी श्रीकृष्ण ने कर्ण के पास दूत भेजकर कहलवाया कि वे आगे नियम से चक्रवर्ती सम्राट होंगे। जिनेन्द्र प्रभु की ऐसी ही उक्ति है। उनकी वाणी कदापि असत्य नहीं हो सकती। आप कुन्ती पुत्र हैं व पांडव आपके भाई हैं; अतः आप इस युद्ध में सहयोग न करें व कुरूजांगल प्रदेश का शासन आनंद से संभालें। पांडव पुराण में इस प्रकार का कथन है।
किन्तु हरिवंश पुराण के अनुसार युद्ध क्षेत्र में कन्ती घबड़ाने पर युधिष्ठिर आदि पुत्रों से आज्ञा लेकर कन्या अवस्था के पुत्र कर्ण से मिलने गई व उसे उसके जन्म के बारे में पूरा वृतांत बतलाया। तब पहले से भी इन बातों के ज्ञाता कर्ण को निश्चय हो गया कि मैं कुन्ती और पांडु का ही पुत्र हूँ। ऐसा जानकर कर्ण ने सर्वप्रथम कुन्ती की पूजा की, तब कुन्ती ने कर्ण से अपने बांधवों के पक्ष में चलने का
संक्षिप्त जैन महाभारत - 12