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दुःशासन वहां आया व अत:पुर में प्रवेश कर बलात द्रौपदी को बाहर खींचने लगा। द्रौपदी के विरोध करने पर वह उसके बाल पकड़ कर बाहर खींच लाया। तब भीम ने यह देखकर दुःशासन को ललकारा व काफी बुरा भला कहा। तभी साहस जुटाकर द्रौपदी ने सभी पांडवों के पौरुष को ललकार दिया। जिससे भीम व अर्जुन का पौरुष जाग गया। वे दुःशासन की
ओर दौड़े पर युधिष्ठिर की आज्ञा न मिलने व युधिष्ठिर के यह कहने पर कि समय अभी ठीक नहीं है। हम इस घटना का प्रतिशोध अवश्य लेंगे। ऐसा कहकर भीम व अर्जुन को शांत कर दिया। इसके बाद सभी पांडवों ने माता कुन्ती को अपने काका विदुर के संरक्षण में छोड़ दिया व सभी पांडव द्रौपदी के साथ वन गमन कर गये। सभी पांडव अनेक वनों, उपवनों, पर्वतों, गिरि, गुहाओं व गिरिशृंगों पर निर्भीक विचरण करते हुए कुछ समय बाद कालिंजर वन में आ गये। यहां आकर वे एक प्राचीन वट वृक्ष के नीचे बैठ गये व सोचने लगे कि द्यूत क्रीड़ा सर्वथा धिक्कार के योग्य है। यह नितांत अव्यावहारिक व पूर्णतः त्याज्य है।
कुछ समय बाद उसी बट वृक्ष के नीचे एक मुनि संघ आया। मुनि संघ ने सभी पांडवों को सांत्वनायुक्त उत्साहवर्धक वचनों से प्रोत्साहित किया व वे वहां से चले गये। पांडव लोग दीर्घकाल तक इस कालिंजर वन में रहे। एक दिन अर्जुन कौतुकवश समीप ही स्थित मनोहर नाम के पर्वत पर चढ़ गये। जहां उन्हें एक भविष्यवाणी सुनाई दी कि भरत क्षेत्र स्थित वैताढय पर्वत पर जाने पर तुम्हें विजय लक्ष्मी प्राप्त होगी तथा वहीं एक शतक शिष्य भी तुम्हें प्राप्त होंगे। किन्तु वहां तुम्हें 5 वर्ष भी व्यतीत करने होंगे। यहीं से तुम सभी पांडवों का अभ्युदय प्रारंभ हो जायेगा। यह भविष्यवाणी सुनकर अर्जुन वहीं एक शिला पर बैठ गए। तभी वहां एक विशालकाय भील आया, उस भील ने अर्जुन को ललकारा व उससे अनेक प्रकार से युद्ध करने लगा। पर जब अर्जुन ने उसे अपने हाथों से उठाकर और हवा में घुमाकर जमीन पर पटकना चाहा; तो उसी क्षण वह भील वस्त्राभूषणों से सुसज्जित एक दिव्य पुरुष के रूप में बदल
98 - संक्षिप्त जैन महाभारत