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किया। परन्तु वहां भी भीम रूपी गंधर्व ने अपना भीषण रूप दिखाकर कीचक के साथियों को या तो मार डाला या वहां से खदेड़ दिया। इस घटना के बाद युधिष्ठिर ने सभी भाइयों से कहा कि अब हमारे अज्ञातवास के मात्र तीन दिन शेष बचे हैं। अतः अब हम सभी का धैर्य के साथ शांत रहना ही उचित है। यह सुनकर सभी पांडवों व द्रौपदी ने मौन धारण कर अपने अग्रज की आज्ञा स्वीकार कर ली। उधर दुर्योधन ने पांडवों की खोज में अपने दूतों को सभी दिशाओं व देशों में भेजा, पर वे सभी असफल होकर वापिस आ गये। तब गांगेय/भीष्म पितामह ने दुर्योधन को फिर से समझाने का प्रयास किया कि तुम पांडवों का बुरा सोचना छोड़ दो; क्योंकि तुम्हारे बुरा चाहने पर भी सभी पांडव व द्रौपदी अच्छी तरह से हैं व जीवित हैं।
फिर गांगेय ने राज्यसभा में द्रोणाचार्य से आकर कहा कि कुछ ही दिनों में पांडवों के यहां आने की आशा की जाती है। तभी बीच में राजा जलंधर ने कहा कि मैंने सुना है, विराट नगर में अपने हितैषी कीचक को किसी गंधर्व ने मार डाला है, अतः मैं अपने मित्र की सहायता करने व उनके गोधन का हरण करने के उद्देश्य से सेना सहित वहां जा रहा हूँ। जिसने भी मेरे से राजा के गोधन को छुड़ाने का प्रयास किया, भले ही वे छद्मवेशी पांडव ही क्यों न हों; मैं उन्हें यमपुरी पहुँचा दूंगा। राजा जलधर के इन वचनों को सुनकर दुर्योधन काफी प्रसन्न हो गया व उसने शीघ्र ही जलंधर को सेना के साथ विराट नगर जाने की आज्ञा दे दी।
राजा जलंधर शीघ्र ही अपनी विशाल सेना के साथ विराट नगर जा पहुँचा व वहां जाकर उसने राजा विराट के गोधन का हरण कर लिया। यह सुन व देखकर राजा विराट भी अपनी चतुरंगणी सेना लेकर अपने गौवंश को छुड़ाने हेतु युद्ध-स्थल जा पहुँचे। युद्ध प्रारंभ होने के कुछ देर बाद राजा जलंधर राजा विराट की सेना के अग्रिम श्रेणी के योद्धाओं को परास्त करता हुआ विराट नरेश के पास पहुँचने में सफल हो गया व वह बिजली की भांति विराट नरेश पर झपट पड़ा।
संक्षिप्त जैन महाभारत - 103