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प्रद्युम्न की लीलायें
नारद व प्रद्युम्न उदधि कुमारी को साथ लेकर शीघ्र ही द्वारिका जा पहुँचे; जहां भानु कुमार नगरी के बाहर मैदान में किसी कार्य से आया था। यह देखकर प्रद्युम्न विमान से नीचे उतर कर एक वृद्ध का रूप धारण कर व एक सुन्दर घोड़ा लेकर भानु कुमार के पास जा पहुँचा । भानुकुमार उस घोड़े पर सवार हो गया। किन्तु घोड़े ने भानुकुमार को काफी तंग करने के बाद उसे उसी वृद्ध के पास छोड़ दिया; तब प्रद्युम्न रूपी वह वृद्ध उसी घोड़े पर सवार हुआ व मायावी बंदरों व घोड़ों की सहायता से सत्यभामा के उपवन को उजाड़ने लगा। उसने उस उपवन में स्थित वापी का जल सुखा दिया। इसी समय श्रीकृष्ण नगर के द्वार की ओर आ रहे थे। उन्हें देखते ही प्रद्युम्न ने मायामयी मक्खियों, डांस व मच्छरों को इतनी अधिक मात्रा में छोड़ा कि श्रीकृष्ण यह देखकर वापिस हो गये। तत्पश्चात प्रद्युम्न एक रथ पर सवार होकर नगर की ओर बढ़े, जहां उसने विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाओं से नगर वासियों का मन मोह लिया। प्रद्युम्न ने तत्पश्चात महलों में प्रवेश किया व सीधे सत्यभामा के महल में आयोजित ब्राह्मण भोज में शामिल होने के लिए वहां सबसे आगे के आसन पर जाकर बैठ गये व ब्राह्मणों के विरोध के बावजूद वहां बैठकर संपूर्ण भोजन खा गये। जब कुछ भी भोजन शेष न बचा तो उसने सत्यभामा को कृपण कहा व संपूर्ण भोजन का वहीं पर वमन कर दिया।
फिर प्रद्युम्न ने एक छुल्लक का वेश धारण किया। वे सीधे रूक्मणि के महलों में जा पहुँचें; व वहां बड़े प्रेम से रूक्मणि के दिये हुए लड्डू खाये । उसी समय सत्यभामा का आज्ञाकारी नाई रूक्मणि के बाल लेने आ पहुँचा। तब प्रद्युम्न ने उस नाई का खूब तिरस्कार किया व उसे वहां से भगा दिया। सत्यभामा की शिकायत पर जब बलदेव रूक्मणि के महलों की ओर जाने लगे, तो प्रद्युम्न एक ब्राह्मण का रूप धारण कर रास्ते में पैर फैलाकर बैठ गया। बलदेव ने जब 112 ■ संक्षिप्त जैन महाभारत