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उसने शीघ्र ही राजा विराट के सारथी को निहत कर दिया तथा वह विराट नरेश के रथ पर आ चढ़ा। उसने शीघ्र ही विराट नरेश को बंदी बना लिया। किन्तु तभी अग्रज युधिष्ठिर के कहने पर भीम ने एक विशाल वृक्ष को उखाड़ लिया व राजा विराट की सहायता हेतु वह शीघ्र ही राजा जलंधर की सेना में घुस गया। उस भयंकर युद्ध में भीम ने 1100 रथों को नष्ट कर दिया। अर्जुन ने भी युद्ध क्षेत्र में 900 अश्वों को नष्ट कर दिया। नकुल के घनाघाट से शत्रुओं की रक्षा पंक्ति नष्ट हो गई। सहदेव ने भी वीरतापूर्वक युद्ध कर जलंधर की सेना में अफरा तफरी मचा दी। तब अपनी सेना का मनोबल गिरते देखकर राजा जलंधर भीम की ओर बढ़ा; पर भीम ने शीघ्र ही राजा जलंधर के सारथी को मारकर उसके रथ पर चढ़ कर जलंधर नरेश को बंदी बना लिया व विराट नरेश को उससे छुड़ाकर उन्हें मुक्त करा लिया। पांडवों ने राजा विराट के संपूर्ण गोधन को भी सेना से मुक्त करा लिया। किन्तु कभी अपने गुप्तचरों से जलंधर नरेश की हार का समाचार सुनकर दुर्योधन शीघ्र ही अपनी विशाल सेना के साथ विराट नगर के युद्ध-स्थल पहुँच गया व उसने युद्ध कर पुनः विराट नरेश के गोधन का हरण कर लिया।
इसी बीच द्रौपदी ने विराट पुत्र को सांत्वना देकर अर्जुन की ओर इशारा कर विराट पुत्र को युद्ध में शामिल होने को कहा। अर्जुन एक रथ में सवार होकर पुनः युद्ध क्षेत्र में पहुँच गये, परन्तु इसी बीच दुर्योधन की विशाल सेना को देखकर विराट नरेश का पुत्र घबड़ा गया व पीछे लौटने लगा। तभी अर्जुन ने विराट नरेश के पुत्र को समझाया कि युद्ध क्षेत्र में पीठ दिखलाना वीरों का काम नहीं है। तुम्हारे पुण्य के प्रताप से मैं तुम्हारा सारथी हूँ। अतः निर्भय होकर आगे बढ़कर युद्ध करो। परन्तु अर्जुन के यह कहने पर भी विराट पुत्र उत्तर युद्ध के लिए साहस नहीं जुटा सका। तब अर्जुन ने विराट पुत्र उत्तर को अपना सारथी बनाया व कहा कि मैं ही अर्जुन हूँ। इतना कहकर वे युद्ध करने लगे। इसी समय ज्वलंत नाम के देव ने अर्जुन को एक देव प्रदत्त रथ प्रदान किया। 104 - संक्षिप्त जैन महाभारत