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गये। वहां पर कृष्ण व अर्जुन ने विभिन्न प्रकार की क्रीड़ायें की। तत्पश्चात श्रीकृष्ण अर्जुन को द्वारिका ले गये। वहां अर्जुन ने अति रूपसी युवती को देखा, जिससे वह उस पर मोहित हो गये। तब जिज्ञासावस अर्जुन ने कृष्ण से ही उस युवा सुन्दरी के बारे में पूछ लिया। तब कृष्ण ने अर्जुन को बतलाया कि यह मेरी सहोदरा सुभद्रा है। तब पार्थ अर्जुन ने श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि ये मेरे मामा की पुत्री है, मैं इससे विवाह करना चाहता हूँ, तब कृष्ण ने अर्जुन का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिर श्रीकृष्ण के आदेश से एक रथ मंगवाया गया। इस रथ पर अर्जुन सवार हो गये व कृष्ण व सुभद्रा की अनुमति से उसी रथ पर अर्जुन ने सुभद्रा को बिठाया व पवन गति से वे वहां से चले गये। तुरंत सुभद्रा हरण की सूचना चारों ओर फैल गई, परिणामस्वरूप तुरंत समुद्रविजय, बलदेव आदि समस्त यादव गण सुभद्रा को ढूंढने निकल पड़े। श्रीकृष्ण भी मुस्कुराते हुए सबके साथ हो गये। उन्होंने अपना पांचजन्य शंख फूंक दिया, परन्तु पार्थ अर्जुन व सुभद्रा किसी को भी नहीं मिले। तब श्रीकृष्ण बोले कि जो होना था सो हो गया। लांछन से बचने के लिए यह ही उत्तम होगा कि हम अर्जुन के साथ ही सुभद्रा का विवाह कर दें। सभी की सहमति हो जाने पर श्रीकृष्ण ने सुभद्रा को लाने हेतु सुनपत नगर को अर्जुन के पास इस विशेष संदेश के साथ एक दूत भेजा, जो शीघ्र ही सुभद्रा को लेकर वापिस आ गया। तब विधि-विधान पूर्वक राजसी ठाट-बाट से सभी पांडवों को विवाह हेतु आमंत्रित किया गया व अर्जुन के साथ सुभद्रा का विवाह कर दिया गया। द्वारावती में ही भीम ने लक्ष्मीवती व शेषवती के साथ, नकुल ने विजया के साथ व सहदेव ने सुरति के साथ पाणिग्रहण कर विवाह किये। कालांतर में सुभद्रा ने एक यशस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम अभिमन्यु रखा गया।
96 - संक्षिप्त जैन महाभारत