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आ रहे हैं। उनके आगमन के बाद जो निर्णय तुम सब करोगी; वैसा होगा।
___ अवधिज्ञान से बतलायी ये बातें चल ही रही थीं, कि तभी पांचों पांडव वहां आये। उन्होंने मुनिराज को नमस्कार कर उनकी पूजा वंदना की। पांडवों को देखकर वे एकदश कुमारियां अति प्रसन्नता को प्राप्त हो गई तथा वे नगर की
ओर प्रस्थान कर गईं। राजा चण्डवाहन सूचना मिलते ही दल-बल के साथ जिनालय आ पहुँचा व मुनिराज के दर्शन कर पांडवों को माता कुन्ती के साथ अपने महलों में लिवा लाया। वहीं माता कुन्ती की आज्ञा से युधिष्ठिर का विवाह उन ग्यारह कन्याओं के साथ सम्पन्न हुआ।
सभी पांडव माता कुन्ती के साथ अकेले ही आगे बढ़कर एक जंगल में एक बट वृक्ष के नीचे पहुँचे। जहां युधिष्ठिर आदि तो सो गये पर भीम जागते रहे। तभी एक विद्याधर वहां एक सुंदरी को लेकर आया व भीम से उसे अपनी पत्नी रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना करने लगा। वह बोला-यहीं पास में एक संध्याकार नाम का नगर है। जहां राजा सिंहघोष का शासन है। इनकी रानी का नाम लक्ष्मणा/सुदर्शना है। यह नरेश हिडम्ब वंशीय है। उन्हीं की ये कन्या हिडम्बा हृदयसुन्दरी है। एक निमित्तज्ञानी ने यहां के राजा को बतलाया था कि इसका वर वहीं होगा, जो पिशाच वट के तले निश्चिंततापूर्वक जाग्रह रह सकता हो या अपने बाहुबल से इस वृक्ष में निवास रत पिशाच को पराजित कर सकता हो। आप हमें इस वृक्ष के नीचे जाग्रत अवस्था में मिले; अतः आप ही इस राज-कन्या के योग्य वर हैं। तभी उस कन्या ने भी निवेदन किया कि आप शीघ्रता कर मेरा वरण करें अन्यथा पिशाच आ जायेगा।
यहां एक विद्याधर भी अपनी विद्याओं की पुनः प्राप्ति के लिए साधना करता है। वह भी बड़ा भयंकर व दुष्ट है। यह सुनते ही भीम ने विशाल गर्जना कर उस पिशाच का आह्वान किया। यह गर्जना सुनकर वह पिशाच भीम के सम्मुख युद्ध हेतु आकर खड़ा हो गया। दोनों में विभिन्न
संक्षिप्त जैन महाभारत - 87