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व तुंडिका देवी को परास्त कर गंगा को तैर कर पार कर अपने भाइयों के साथ हो लिए। ___ गंगा पार कर सभी पांडवों ने ब्राह्मणों का भेष धारण कर कौशिकपुरी नगरी में प्रवेश किया। वहां राजा वर्ण का शासन था। प्रभावती/प्रभाकरी उसकी महारानी थी। उसके कमला/कोमला नाम की सुन्दर कन्या थी। एक बार कोमलांगी कोमला वन क्रीड़ा को गईं। वहां पांडव भी अपनी माता कुन्ती के साथ उपस्थित थे। वे स्नान कर दर्शन पूजन कर रहे थे; तभी कोमला की दृष्टि पांडवों में ज्येष्ठ युधिष्ठिर पर पड़ी, वह उन्हें देखकर कामज्वर से पीडित हो गई। सभी सहेलियों के साथ वह अपने महल में आ तो गई किन्तु उसका मन युधिष्ठिर पर ही बना रहा। उसकी यह दशा देखकर उसकी माता ने उससे इसका कारण पूछा; तब कमला ने अपने मन की बात अपनी माता से कह दी। कमला की माता ने यह बात अपने पति राजा वर्ण से कही, तब मंत्रियों से परामर्श करने के पश्चात् राजा ने पांडवों को महलों में बुलवा लिया व उनको आदर सत्कार पूर्वक भोजन आदि कराकर योग्य अवसर पाकर अपनी कन्या के विवाह का प्रस्ताव युधिष्ठिर के साथ रख दिया। माता कुन्ती ने शीघ्र ही यह प्रस्ताव स्वीकार कर दोनों का विवाह करा दिया। यहां कुछ समय रूकने के बाद कमला को वहीं छोड़ कर व द्वारिका जाने की कह कर वहां से चलकर वे सभी पुण्यद्रुम/ श्लेषमांतक वन में स्थित एक जिनालय में पहुँचे। उन्होंने वहां स्थित मुनिराज व आर्यिका माता के दर्शन किये। आर्यिका माता के पास ही एक सुन्दर बाला बैठी थी। जब कुन्ती ने आर्यिका माता से उस बाला के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह कौशाम्बी नगरी के नरेश विन्ध्यसेन व उनकी रानी विन्ध्यसेना की पुत्री बसंतसेना है।
राजा ने अपनी पत्री का विवाह पांडव पत्र यधिष्ठिर से करने का संकल्प लिया था। पर कौरवों ने पांडवों को कपटपूर्वक लाक्षागृह में जला दिया। तब बसंतसेना जो पहले ही युधिष्ठिर को अपना पति मान चुकी थी। उसने किसी
संक्षिप्त जैन महाभारत - 85