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शिला को जैसे ही उठाया तो उसे एक सुरंग दिखाई दी। तब सभी पांडव उस सुरंग से निकलकर अपनी माता के साथ उस महल से बाहर निकल गये। यह सुरंग बाहर एक वन में खुलती थी। इसी बीच भीम ने पास में स्थित एक श्मसान में पड़े शवों में से 6 शवों को उठाकर उस जलते हुए लाक्षागृह में डाल दिया, ताकि दुर्योधन समझे कि सभी पांडव व कुन्ती महल में जलकर मर गये। इसके बाद सभी पांडव वहां से निकल कर देशाटन को चले गये। इस घटना से प्रजा दुर्योधन के खिलाफ हो गई।
प्रातः होने पर यह जानकर कि सभी पांडव जलकर मर गए हैं, लोकाचार हेतु दुख प्रकट करते हुए दुर्योधन सभी कौरव भाइयों को साथ लेकर उस जले हुए महल के पास पहुँचे। इस घटना से हतप्रभ जनता भी विलाप करने लगी व कहने लगी कि देखो यह हस्तिनापुर अब कैसा उजाड़ सा दिख रहा है। जब इस घटना का पता भीष्म पितामह को चला, तो वे यह समाचार सुनकर मूर्च्छित हो गये। मूर्छा दूर होने पर वे विलाप करने लगे व बोले कि मुझे पूर्ण संदेह है कि किसी ने कपट पूर्वक सौम्यमूर्ति पांडवों को छल लिया है। द्रोणाचार्य भी यह समाचार सुनकर मूर्छित हो गये। वे भी इस कांड के पीछे कौरवों का हाथ होने की सोचने लगे। द्रोणाचार्य ने तो कौरवों से स्पष्ट कह भी दिया कि तुम लोगों को इस तरह अपने ही कुल का विनाश कर देना क्या उचित प्रतीत हो रहा है। यह सुनकर कौरव नीचा मुंह कर खड़े हो गये। इसके बाद जले हुए महल की अग्नि को शीतल किया गया। तब उसमें जले हुए छः शव मिले। इससे सभी को यह पूर्ण निश्चय हो गया कि माता कुन्ती के साथ सभी पांडव विदग्ध हो गये हैं। यह देखकर हस्तिनापुर का कण-कण शोक सागर में निमग्न हो गया। पर कौरवों की जननी गांधारी को इस समाचार से हार्दिक प्रसन्नता हुई। उसने अपने सभी पुत्रों को बधाई दी व इस उपलक्ष्य में एक विराट उत्सव का आयोजन भी कर डाला। सभी कौरव पांडवों का क्रियाकांड कर निश्चित हो गये।
संक्षिप्त जैन महाभारत - 83