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जब यह समाचार द्वारिका पहुँचा तो पांडवों के प्रति किये गये घोर अन्याय का सभी यादवों ने प्रतिशोध चुकाना चाहा। इसमें समुद्रविजय सहित दसों भाई, वलभद्र व नारायण भी शामिल थे। जब वे अपनी सेना को सुसज्जित कर प्रस्थान करने लगे तो श्रीकृष्ण बोले- जब मैं हस्तिनापुर में ससैन्य पहुँचूंगा तब कौरवों का समस्त अभियान दूर हो जायेगा। इसी बीच किसी विद्वान मंत्री ने कहा- कौरवों के अधीन भी समस्त शस्त्रों से सुसज्जित चतुरंगणी सेना है, प्रचंड महारथी हैं व सहायक नरेश भी हैं। कौरवों को जरासंध का पूर्ण सहयोग है। अतः दुर्योधन आपसे भयभीत नहीं होगा। इस समय दुर्योधन आपसे भय नहीं खायेगा। वैसे ही हम सभी गुप्तवास कर रहे हैं। अतः इस समय युद्ध के विचार को त्याग देना ही उचित है। तब विचार-विमर्श कर तत्काल युद्ध की तैयारी रोक दी गई व वे सभी शांत हो गये।
उधर पांडव माता कुन्ती के साथ चलते-चलते गंगा तट पर पहुंच गये व एक धीवर से नाव मांगकर उसमें सवार होकर गंगा नदी पार करने लगे। परन्तु नाव बीच मझधार में जाकर स्तंभित हो गई। तब धीवर ने पांडवों को बतलाया कि यहां तुडिंका देवी रहती है; अतः उसे मानव बलि का उपहार भेंट कर नौका को मुक्त करवा लीजिये। उसने कहा शीघ्रता कीजिये अन्यथा अनर्थ हो जायेगा। यह सुनकर सभी पांडव बिना पंक के ही आकंठ फंस गये। काफी विचार विमर्श के बाद युधिष्ठिर ने शांत चित्त होकर प्राणप्रिय परिजनों का संकट मोचन करने के लिए स्वयं अपनी बलि देने का विचार किया व सभी को संबोधित कर बलि देने को उद्धत हो गये। यह देखकर कुन्ती मूर्छित हो गई। तभी भीम बोले-आप ऐसा नहीं कर सकते, मैं ही अपने प्राणों की बलि देता हूँ। यह कहकर भीम तुंडिका देवी को परास्त करने हेतु गंगा की मध्य धारा में कूद गये। भीम के कदते ही नाव मुक्त हो गई व शेष पांडव माता कुन्ती के साथ गंगा पार जा पहुँचे। इधर भीम के गंगा में कूदते ही तुंडिका देवी जब मगर का रूप धारण कर भीम की ओर बढ़ी तभी भीम उस मगर पर झपटे
84. संक्षिप्त जैन महाभारत