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अपनी अंगुलियों के स्पर्श से यद्यपि रास लीला के समय गोप बालाओं को सुख उत्पन्न कराते थे; फिर भी वे स्वयं निर्विकार रहते थे। एक दिन ब्रज में भीषण वर्षा होने से श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर गायों की रक्षा की थी।
कृष्ण की लोकोत्तर चेष्टाओं को सुनकर कंस को संदेह हुआ व कृष्ण को शत्रु समझकर वह गोकुल आया; पर यशोदा ने कोई उपाय रच आत्मीयजनों के साथ कृष्ण को गोकुल से बाहर भेज दिया। तभी एक ताड़वी नाम की पिशाची जोर-जोर से अटटहास कर कृष्ण को डराने लगी। तब कृष्ण ने उसे देखते ही मार भगाया। कंस को गोकुल में कृष्ण के न मिलने पर वह उदास मन से मथुरा वापिस आ गया। तभी मथुरा के दिक्पाल मंदिर में कृष्ण के पुण्य प्रताप से सिंहवाहिनी, नागशैया, अजितंजय नाम का धनुष व पांचजन्य शंख नामक रत्न प्रकट हुए। तभी कंस को ज्योतिषी ने बताया कि जो नागशैया पर चढ़ कर धनुष पर डोरी चढ़ाकर पांचजन्य शंख फूंक देगा, वही तुम्हारा शत्रु है। या जो ये अस्त्र-शस्त्र पैदा हुए हैं व जिनकी देवता रक्षा करते हैं, इनको जो शास्त्रोक्त विधि से सिद्ध कर लेगा, वह चक्ररत्न से सुरक्षित राज्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर कंस ने उन्हें सिद्ध करने का प्रयास किया, पर वह विफल रहा। तब कंस ने यह घोषणा करवा दी कि जो इन अस्त्र-शस्त्रों को सिद्ध करेगा, उसे पुरस्कार के साथ-साथ वह अपनी पुत्री भी प्रदान करेगा। यह उद्घोषणा सुनकर अनेक राजा-महाराजा मथुरा आये। तभी एक दिन कंस की पत्नी का भाई स्वभानु किसी काम से गोकुल आया। वह वहां कृष्ण का अदभुत पराक्रम देखकर प्रसन्न होकर कृष्ण को भी मथुरा ले गया। उपस्थित राजा-महाराजा ज़ब कुछ न कर सके, तब कृष्ण ने शीघ्र ही नागशैया पर चढ़कर धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा पांचजन्य शंख फूंक दिया। तभी विपदा को समझ शीघ्र ही सुभानु व बलदेव ने कृष्ण को आदरपूर्वक वापिस गोकुल भिजवा दिया। बाद में कंस ने कृष्ण को ढूंढने का बहुत प्रयास किया पर वह सफल न हो सका। - एक बार यदुवंशियों की विशाल सेना को मथुरा की ओर
संक्षिप्त जैन महाभारत -67