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भी थी। तब रूक्मणी ने कृष्ण से घबराकर कहा कि मैं बड़ी मंद भाग्यवती हूँ। तब यह सुनकर कृष्ण ने एक बाण से ताड़ का वृक्ष काट दिया व हाथ से अंगूठी में जड़ा हीरा निकालकर उसे चूर-चूर कर दिया। यह देखकर रूक्मणी हाथ जोड़कर कृष्ण से बोली कि हे नाथ! आप मेरे भाई रूक्मी की रक्षा करें। तभी कृष्ण व बलदेव ने अपने रथों को शत्रु की ओर मोड़ दिया। युद्ध में शिशुपाल मारा गया, पर रुक्मणी के निवेदन पर रुक्मी को छोड़ दिया गया। तब गिरनार पर्वत पर जाकर श्रीकृष्ण ने रूक्मणी के साथ विधिवत विवाह रचाया तथा बाद में रुक्मणी के साथ द्वारिका नगरी आ गये। श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के महल के पास ही रूक्मणी का एक नया महल बनवा दिया। उन्होंने रूक्मणी को पटरानी का पद भी दे दिया। बाद में श्रीकृष्ण रूक्मणी व सत्यभामा से वन क्रीड़ा करके आनंद से दिन व्यतीत करने लगे। __एक दिन संबंधों को प्रगाढ़ करने हेतु स्नेह से भरे हस्तिनापुर नरेश दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के पास एक दूत भेजकर निवेदन किया कि रूक्मणी व सत्यभामा में से जिसके पहले पुत्र उत्पन्न होगा और यदि मेरे पहले पुत्री उत्पन्न हुई; तो वह उसका विवाह पहले उत्पन्न पुत्र से कर देगा। श्रीकृष्ण ने इसे स्वीकार कर लिया। तदनंतर कुछ ही दिनों के बाद रूक्मणी ने हंस विमान में आसमान में स्वप्न में विहार किया व इस स्वप्न का फल श्रीकृष्ण द्वारा बतलाने पर कि तेरे यशस्वी पुत्र होगा वह अति प्रसन्नता को प्राप्त हुई। तब अच्युतेंद्र स्वर्ग से चयकर एक जीव रूक्मणी के गर्भ में आया। उसी समय सत्यभामा ने भी स्वर्ग से च्युत हुए देव को गर्भ में धारण किया। यह समाचार सुनकर यदुवंशी अति आनंदित हुए। काललब्धि पूर्ण होने पर श्रीकृष्ण की दोनों रानियों ने एक ही समय उत्तम पुत्रों को रात्रि में जन्म दिया। यह समाचार जब श्रीकृष्ण को भेजा गया; तब वे शयन कर रहे थे। अतः सत्यभामा के सेवक श्रीकृष्ण के सिरहाने व रूक्मणी के सेवक पैरों के पास खड़े होकर श्रीकृष्ण के जागने का इंतजार करने लगे। जब वे जागे, तो उनकी पहली
76. संक्षिप्त जैन महाभारत