________________
कृष्ण का विवाह
एक बार नारद द्वारकापुरी में यादवों की सभा में पधारे व श्रीकृष्ण के अंत:पुर को निहारने हेतु उसमें प्रविष्ट हुए। उस समय श्रीकृष्ण की पटरानी सत्यभामा दर्पण में अपना मुख देख रही थी। सत्यभामा ने नारद को नहीं देखा। इससे नारद रूष्ट होकर बाहर आकर सोचने लगे कि इस विद्याधर पुत्री ने मुझे देखा भी नहीं; मैं इसके मद को अभी चूर करता हूँ। नारद सीधे कुण्डनपुर नगर पहुँचे। यहां के नरेश भीष्म थे। उनके रूक्मी नाम का एक पुत्र व रूक्मणी नाम की कन्या थी। रूक्मणी अत्यन्त सुन्दर थी। नारद उसका रूप लावण्य देखकर हतप्रभ से हर गये व सोचने लगे कि इसे श्रीकृष्ण की पटरानी बनाकर मैं सत्यभामा के अहंकार को अवश्य नष्ट करूंगा। तब नारद ने रूक्मणी से कहा कि द्वारका के स्वामी तुम्हारे पति हों। रूक्मणी के पूछने पर उन्होंने श्रीकृष्ण के बारे में विस्तार से बतलाया।
इसके बाद नारद वापिस सीधे श्रीकृष्ण के पास जाकर रूक्मणी के रूप की प्रशंसा करने लगे। उन्होंने श्रीकष्ण के मन को रूक्मणी के लिए मोह लिया। परन्तु रूकमी जो रूक्मणी का भाई था; अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। श्रीकृष्ण को जब यह मालूम चला तो वे बलदेव के साथ सेना लेकर कुण्डनपुर आ गये; जहां रूक्मणी को व्याहने के लिए शिशुपाल भी आया था। रूक्मणी जब नागदेव की पूजा कर उद्यान में खड़ी थी तभी वहां श्रीकृष्ण भी पहुँच गये व रूक्मणी से प्रेमालाप कर उसे रथ पर सवार होने को कहा; किन्तु रूक्मणी लज्जाग्रस्त हो गई। तब श्रीकृष्ण ने अनुराग व लज्जा से युक्त रूक्मणी को दोनों भुजाओं से उठाकर रथ पर बिठा लिया।
तदनंतर श्रीकृष्ण ने रूक्मी, शिशुपाल व भीष्म को रूक्मणी के हरण का समाचार देकर रथ आगे बढ़ा दिया। तभी रूक्मी व शिशुपाल रथों पर सवार होकर कृष्ण व बलदेव का सामना करने पहुँच गये। उनके साथ विशाल सेना
संक्षिप्त जैन महाभारत.75