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भानुकुमार रखा गया। एक बार नारद ने कृष्ण को बतलाया कि विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में जम्बपर नगर में जाम्बब विद्याधर नरेश की पत्नी शिवचंद्रा के यहां विश्वसेन नाम का पुत्र व जाम्बवती नाम की कन्या अति रूपवान व गुणवान हैं। वह इस समय गंगा द्वार में स्नान कर रही है। नारद के मुख से जाम्बवती के रूप व गुणों की प्रशंसा सुनकर श्रीकृष्ण अधीर हो गये व सेना के साथ वहां पहुँच गये। वहां दोनों ने एक दूसरे को देखा व परस्पर आसक्त हो गये। तब श्रीकृष्ण ने जाम्बवती का आलिंगन किया व उसका हरण कर लिया। यह देखकर जाम्बवती की सखियां रोने लगी। यह रुदन सुनकर जाम्बवती के पिता शीघ्र ही आकाशमार्ग से वहां पहुँच गये; किन्तु वहां का हाल देखकर उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया। बाद में उन्होंने अपने पुत्र विश्वसेन को राज्य का भार सौंपकर दीक्षा ग्रहण कर ली। वहीं कृष्ण जाम्बवती को लेकर द्वारिका चले गये। बाद में श्रीकृष्ण ने सिंहल द्वीप के नरेश की पुत्री लक्ष्मणा का हरण कर उसके साथ विवाह कर लिया। बाद में श्रीकृष्ण ने सुराष्ट्र देश के नरेश राष्ट्रबर्धन की पत्नी विनया की पुत्री सुसीमा का हरण कर उससे भी विवाह किया। कुछ समय पश्चात् सिंधु देश के बीतभय नगर के इक्ष्वाकुवंसी नरेश मेरु व उनकी पत्नी चंद्रावती की पुत्री गौरी के साथ भी विवाह किया। बाद में बलदेव के मामा अरिष्टपुर नरेश राजा हिरण्यनाभ जिनकी महारानी का नाम श्रीकांता था- की पुत्री पदमावती का स्वयंवर मंडप से हरण कर व विरोधी राजाओं को परास्त कर उसके साथ विवाह किया। हिरण्यनाभ के बड़े भाई रैवत की चार कन्याओं का विवाह बलदेव के साथ पहले ही हो चुका था। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने पुष्कलावती नगरी के राजा इन्द्रगिरि, जिनकी महारानी का नाम मेरुसती था-की पुत्री गांधारी-जो गंधर्व विद्या में अत्यन्त निपुण थी; के साथ विवाह किया। इस प्रकार श्रीकृष्ण स्त्री रत्नों से समृद्धि को प्राप्त हुए।
संक्षिप्त जैन महाभारत.79