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कल्याणक मनाया व बाद में वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर वापिस माँ की गोद में दे दिया। उन्होंने तीर्थंकर बालक का नाम नेमिनाथ रखा। बाद में सभी देवता अपने- अपने स्थानों को चले गये। किन्तु पांडव पुराण व उत्तर पुराण के अनुसार भगवान नेमिनाथ का जन्म द्वारिका पहुँचने पर द्वारिका में ही हुआ था। चूंकि ये दोनों पुराण बाद में लिखे गये हैं, अतः भगवान नेमिनाथ का जन्म शौरीपुर में ही मानना उचित है।
उधर राजगृह में जब जरासंध को अपराजित के युद्ध में मारे जाने का समाचार मिला, तो उसने समस्त यादवों को नष्ट करने का पक्का इरादा कर लिया व सभी मित्र राजाओं को युद्ध के लिए आमंत्रण भेज दिये। सभी सेनाओं के आ जाने पर जरासंध ने भी अपनी सेना को तैयार कर मथुरा, शौरीपुर की ओर कूच कर दिया। पर यादवों के गुप्तचरों ने शीघ्र ही जरासंध की योजनाओं का पता लगा लिया । जरासंध की युद्ध की भारी तैयारी को देखकर तथा यह सोचकर कि यद्यपि हमारे वंश में कृष्ण व बलराम क्रमशः नारायण व बलभद्र हैं, तीर्थंकर बालक नेमिकुमार भी हैं; इसलिए जरासंध हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता; पर इस समय हमें चुप रहना ही उचित है। ऐसा विचार कर वे अपने मित्र भोजवंशी आदि राजाओं के साथ अपनी सेनाओं को साथ लेकर मथुरा व शौरीपुर छोड़कर वहां से प्रस्थान कर गये। वे शीघ्र ही विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गये। मार्ग में पीछे-पीछे जरासंध अपनी व मित्र राजाओं की सेनाओं के साथ आ रहा था। यह जानकर भी सभी यादव नरेश भी उत्साह से भरे युद्ध के लिए तैयार हैं। तभी जरासंध ने मार्ग में एक बुढ़िया को रोते हुए देखा; जहां मायावी भीषण अग्नि भी जल रही थी। जब जरासंध ने उस बुढ़िया से रोने का कारण पूछा, तब उस बुढ़िया ने उसे बतलाया कि राजगृह नगर का राजा जरासंध, जिसका समुद्र पर्यंत शासन है, उसके भय से प्राण बचाने हेतु यादव नरेश अपना राज्य छोड़कर भागे जा रहे थे, किन्तु कहीं भी शरण न मिलने
72 ■ संक्षिप्त जैन महाभारत