________________
वसुदेव का नगर-त्याग व पुनर्मिलन
वास्तविकता जानकर, एक दिन रात्रि में राजा समुद्रविजय से विमुख होकरं व एक नौकर को साथ लेकर- वसुदेव रात्रि में नगर के बाहर गये व एक मुर्दे को अपने वस्त्राभूषण पहना कर बोले-'मैं अग्नि में प्रवेश कर रहा हूँ'; ऐसा कहकर उस मुर्दे को अग्नि में डालकर वे अदृश्य हो गये। इसके पहले उन्होंने अपनी माता के नाम एक पत्र भी लिखा कि वसुदेव अपकीर्ति के भय से महाज्वालाओं वाली अग्नि में गिर कर मर गया है। मेरे राजा व चुगलखोर प्रजा सुखी रहें। तब साथ गये नौकर ने वसुदेव को मरा जानकर महलों में आकर इस घटना की सूचना राजा समुद्रविजय को दी। तब समुद्रविजय आदि सभी भाई श्मशान की ओर गये व चिता में वसुदेव के वस्त्राभूषण देखकर, यह जानकर कि वसुदेव ने अपने आप को समाप्त कर लिया है, सभी अति दु:खी हुए व उसका विधि-विधान पूर्वक क्रियाकर्म कर दिया, व सभी लोग काफी दु:खी मन से वापिस आ गये।
उधर वसुदेव एक ब्राह्मण का वेश धारण कर विजयखेट नगर पहुँचे तथा वहां सुग्रीव नाम के गंधर्वाचार्य के यहां रहने लगे। गंधर्वाचार्य की सोमा व विजयसेना नाम की दो सुन्दर कन्यायें थीं। वे दोनों गंधर्व कला में पारंगत थीं। वसुदेव भी गंधव विद्या में अति निपुण थे। गंधर्वाचार्य ने पहले से ही सोच रखा था कि जो भी व्यक्ति गंधर्व विद्या में इन्हें परास्त कर देगा, वे इन कन्याओं का विवाह उससे कर देंगे। वसुदेव ने उन दोनों कन्याओं को गंधर्व विद्या में परास्त कर दिया तथा इस प्रकार उन कन्याओं से विवाह कर लिया। इसके बाद वसदेव कई महीनों तक वहीं रहें। उनका विजयसेना से एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ; जिसका नाम अक्रूर रखा गया। परन्तु इसके बाद वसुदेव अज्ञात रूप से वहां से निकल गये। वे आगे जाकर एक सरोवर में स्नान करने लगे व वहां विचित्र प्रकार की ध्वनियां करने लगे; जिससे समीप स्थित सोमा नाम के हाथी की नींद खुल गई व वह हाथी वसुदेव
संक्षिप्त जैन महाभारत - 35