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पाण्डु व धृतराष्ट्र विवाह तथा कौरवों, पाण्डवों का जन्म
अब हम पुनः पदम पुराण में कुरूवंश वर्णित कथा की ओर लौटते हैं। हरिवंश पुराणानुसार राजा धृत/व्यास से धृतराज व धृतराज की पत्नियों अंबिका, अंबालिका व अंबा नाम की स्त्रियों से क्रमशः धृतराष्ट्र, पांडु व विदुर उत्पन्न हुए।
व्यास ने बड़े होने पर अंधकबृष्टि से कुन्ती का विवाह अपने पुत्र पांडु से करने को कहा, पर पांडु के उस समय रोगी होने से यह नहीं हो सका। इससे पांडु अत्यन्त खेद को प्राप्त हुए। कभी रोगमुक्त होने पर वह वन में पुष्प शैय्या पर लेटे थे, तभी उन्हें जमीन पर पड़ी एक मुद्रिका दिखाई दी। इस मुद्रिका को पांडु ने उठा लिया। यह मुद्रिका वास्तव में एक विद्याधर, (जिसका नाम बज्रमाली था) की थी। वह अपनी खोई हुई मुद्रिका को दूंढ़ता हुआ पांडु के पास आ पहुँचा। पांडु के पूछने पर उस विद्याधर ने बताया कि यह मुद्रिका अनमोल है, वह मनवांछित फल देती है व इसके पहनने से और कोई उसे देख नहीं सकता। तब पांडु ने उस विद्याधर को बतलाया कि यह मुद्रिका तो मुझे यहीं पड़ी मिली है। यदि मुद्रिका में ऐसा गुण है, तो यह मुद्रिका कुछ समय के लिए मुझे देने का कष्ट करें। मेरा कार्य पूर्ण होने पर मैं इसे आपको वापिस कर दूंगा। तब उस विद्याधर ने कुछ समय के लिए वह मुद्रिका पांडु को दे दी।
पांडु उस मुद्रिका को धारण कर सीधे अंधकवृष्टि के महल चंपापुर/शौरीपुर पहुँच गया व वह रात्रि में मुद्रिका के प्रभाव से अदृश्य होकर कुन्ती के महल में जा पहुँचा। यहां कुन्ती वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर आसन पर बैठी थी व वह साक्षात रति सदृश्य लग रही थी। पांडु कुन्ती के रूप लावण्य को देखकर अधीर हो गया तथा वह कुन्ती के सामने प्रकट हो गया। अचानक पांडु को अपने सामने
संक्षिप्त जैन महाभारत - 47