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दूत को पांडु के पिता के पास भेजा। वह दूत अनुमति लेकर राजा व्यास के पास जाकर भेंट व उपहार उनके सम्मुख रखकर हाथ जोड़कर निवेदन करने लगा कि मैं चंपा नगरी/शौरीपुर नरेश अंधकबृष्टि का दूत हूँ व अपने राजा की इस इच्छा को बतलाने आया हूँ कि आपके चिरंजीव राजकुमार पांडु का विवाह उनकी पुत्री कुन्ती के साथ हो। राजा व्यास को पहले से ही पता था कि कुमार पांडु कुन्ती पर आसक्त हैं; अतः उन्होंने यह प्रस्ताव आदरपूर्वक स्वीकार कर लिया व दूत को यथोचित उपहार देकर विदा किया। पांडु की तो मानो मनोकामना ही पूर्ण हो गई थी। अतः शीघ्र ही विवाह की तैयारियां शुरू हुईं व सुभद्रा ने अपने पुत्र पांडु की आरती उतार कर बारात को चंपानगरी के लिए विदा किया। ___ अंधकबृष्टि नरेश ने बारात का जोरदार स्वागत किया। नगर की सज्जा देखकर बाराती भी खुश थे। राज पुरोहित ने पांडु व कुन्ती का विवाह सम्पन्न कराया। वहीं कुन्ती की छोटी बहन माद्री ने भी पांडु का वरण किया। राजा ने विवाहोपरांत उन्हें गज, अश्व, रथ, स्वर्ण, रत्न, मणि, वस्त्र व शस्त्र भेंट किये। विवाहोपारांत पांडू अपनी दोनों पत्नियों के साथ हस्तिनापुर को प्रस्थान कर गये। वर पांडु के आगमन की सूचना सुनकर नगर की सभी नारियां जो जिस अवस्था में थी, उसी रूप में पांडु व उसकी पत्नियों को देखने दौड़ी आईं। वे अपनी सुधबुध भी भूल बैठीं। जिन्हें देखकर जन सामान्य ने प्रमुदित होकर उनका जी भरकर उपहास उड़ाया। __नगरवासियों ने वर-वधू की आरती उतारी व उनकी अभ्यर्थना की। महलों में प्रवेश के बाद वे सभी सुखपूर्वक रहने लगे। अब कुन्ती की बाहु-लताओं के प्रगाढ़ आलिंगन में कुमार पांडु कामदेव के कारागार में बंदी थे। इस प्रकार भांति-भांति के भोग विलासों, जिनेन्द्रदेव की महिमा वाले उत्सवों, सत्पात्रों को दान एवं पुण्य के कार्यों में कुमार पांडु का जीवन व्यतीत होने लगा।
संक्षिप्त जैन महाभारत. 51