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कृष्ण जन्म व लीलायें तथा कंस-वध
उधर शौरीपुर से वसुदेव अपनी पत्नी के साथ कंस को दिये वचन के अनुसार मथुरा में रहने लगे। कंस अपनी मृत्यु की आशंका से शंकित होकर वसुदेव की सेवा शुश्रूसा करने लगा। कुछ काल के उपरांत देवकी ने युगल पुत्रों को जन्म दिया। तब इन्द्र की आज्ञा से सुनैगम नामक देव उन्हें उठाकर सुभद्रिल/भद्रिलपुर नगर के सेठ सुदृष्टि की स्त्री अलका को दे आया व उसके मृत जन्मे युगलिया पुत्रों को वह देव देवकी के प्रसूति गृह में रख आया। शंका से युक्त कंस ने उन मृत पुत्रों को रौद्र परिणाम होकर शिला पर पछाड़ दिया। तदनंतर देवकी ने क्रम-क्रम से दो बार युगल पुत्रों को और जन्म दिया। वही देव उन्हें भी सेठ की स्त्री अलका को दे आया व उसके उसी समय जन्मे मृत पुत्रों को देवकी के पास रख दिया। जिन्हें कंस ने उन मृत पुत्रों को भी निर्दय होकर शिला पर पछाड़ दिया। अलका ने देवकी के उन पुत्रों को पाल पोष कर बड़ा किया व उनके नाम क्रमशः नृपदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्रुघ्न व जितशुत्र रखे। वे धीरे-धीरे यौवन को प्राप्त हुए।
तदनंतर देवकी ने एक रात्रि में सात सुन्दर स्वप्न देखे। वे थे-1. उगता सूर्य 2. पूर्ण चंद्रमा, 3. दिग्गजों द्वारा अभिषेक की जा रही लक्ष्मी, 4. आकाश तल से नीचे उतरता विमान 5. निधूम अग्नि 'ज्वाला सहित', 6. रत्नों से युक्त देवों की ध्वजा, 7. मुख में प्रवेश करता सिंह।
देवकी ने इन स्वप्नों की चर्चा अपने भर्तार वसुदेव से की। तब वसुदेव ने कहा- हे स्वामिनी! तेरा पुत्र इस पृथ्वी का स्वामी होगा। यह सुनकर देवकी अति प्रसन्न हो गई। देवकी का समय आनंद से व्यतीत होने लगा। किन्तु देवकी का वह पुत्र सातवें मास में ही कृष्ण श्रवण नक्षत्र में भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ही उत्पन्न हो गया। तब नीति में निपुण बलभद्र के परामर्श पर वसुदेव ने कंस को बिना बतलाये ही, किन्तु देवकी को बतलाकर उस बालक को
संक्षिप्त बैन महाभारत - 6