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कौरव घबरा गये। फिर भीम ने एक-एक कर सभी कौरवों को उस सरोवर में फेंक दिया। वे तैरना नहीं जानते थे; इसलिए बड़ी मुश्किल से वे सब उस सरोवर से निकल पाये ।
यह सब देखकर दुर्योधन ने एक दिन अपने मंत्रियों व अनुजों की बैठक बुलाई व उस बैठक में कहा कि यह भीम पूर्णतः दुर्जेय है। इससे प्रतिस्पर्धा करना हम लोगों के लिए असंभव है। इसका विनाश किये बिना हम लोगों का कल्याण नहीं हो सकता। शत्रु की शक्ति में वृद्धि के पूर्व ही उसको जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। तब सभी ने दुर्योधन की इस बात से सहमति जताई। भीम के बध का अवसर ढूंढा जाने लगा। एक दिन जब भीम प्रगाढ़ निद्रा में सो रहा था, तो दुर्योधन ने उसे बांध लिया व अनुजों की सहायता से भीम को गंगा नदी में फेंक दिया। नींद खुलने पर भीम ने गंगा नदी में अपने को बंधा असहाय पाया; अतः पहले तो उसने अपनी देह को जोर से फुलाया; जिससे उसके बंधन टूट गये। फिर भीम काफी देर तक नदी के जल में पड़ा रहा। तत्पश्चात बड़े ही आनंद से बाहर निकलकर महलों को लौट गया। कौरव उसे देखकर आश्चर्य चकित हो गए। प्रतिशोध की ज्वाला कौरवों के मन में अभी भी पल रही थी। अतः दुर्योधन ने एक दिन भीम को प्राणनाशक सांघातिक विष मिला भोजन करवा दिया; पर भीम को कुछ नहीं हुआ। सत्य ही है, पुण्यात्माओं के सामने हलाहल भी अमृत के समान हो जाता है । भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी, राक्षस आदि सभी, धर्मात्माओं को देखते ही पलायन कर जाते हैं । इसीलिए जो बुद्धिमान एवं विवेकशील पुरुष होते हैं; वे सदैव धर्म रूपी रथ पर आरूढ़ रहते हैं ।
फिर समय की गति के साथ परिवर्तन होने लगे। भीष्म पितामह/ गांगेय, संभ्रात व्यक्तियों व शिष्यों के अनुरोध पर द्रोणाचार्य का विवाह गौतम की पुत्री अश्विनी से हो गया। जिनसे अश्वत्थामा नाम के पुत्र ने जन्म लिया। अश्वत्थामा अत्यन्त बुद्धिमान, धैर्यवान, धर्मात्मा व महापराक्रमी था;
58 संक्षिप्त जैन महाभारत