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बालकों को जन्म दिया। इनके नाम नकुल व सहदेव रखे गये। इन पांचों भाइयों में अनुपम भ्रातृ-स्नेह था।
उधर मेघ एवं विद्युत की तरह पाण्डु के बड़े भाई धृतराष्ट्र व गांधारी अभिन्न थे। उनमें परस्पर अति स्नेह था। अतः गांधारी ने भी प्रथम पुत्र को जन्म दिया व नामकरण संस्कार के पश्चात् उसका नाम दुर्योधन रखा। प्रथम पुत्र प्राप्ति के उपलक्ष्य में राजा ने सभी कारागृह बंदियों एवं पिंजड़े में बंद पक्षियों को मुक्त कर दिया था। फिर गांधारी ने द्वितीय पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम दुःशासन रखा गया। दुःशासन स्पष्ट वक्ता व शूरवीर था। तत्पश्चात गांधारी व धृतराष्ट्र की अन्य रानियों ने 98 अन्य पुत्रों को जन्म दिया, इनमें दुद्धर्षण व रणश्रांत प्रमुख थे। सभी पांडु पुत्र पांडव एवं धृतराष्ट्र पुत्र कौरव अपने पितामह गांगेय/भीष्म के संरक्षण में रहते थे, वे ही इन्हें शिक्षित करते थे। गुरु द्रोणाचार्य ने इन सबको शस्त्र विद्या में निपुण किया था। सभी शिष्यों में अर्जुन सर्वाधिक उत्साही, परिश्रमी व अध्यवसायी था। वह गुरु कृपा का विशेष पात्र था। शब्दभेदी बाण संधान में अर्जुन को द्रोणाचार्य ने ही निपुण किया था। अर्जुन विनयी, सरल-चित्त व निष्पाप शिष्य था। भीम मल्लयुद्ध व गदायुद्ध का अत्यन्त प्रचंड योद्धा था। धृतराष्ट्र व पांडु के बड़े हो जाने पर हस्तिनापुर नरेश व्यास ने अपना राजपाट धृतराष्ट्र व पांडु को सौंप दिया था।
एक बार सैन्य दलबल सहित पांडु अपनी द्वितीय पत्नी माद्री के साथ वन क्रीडा को गये। वहां कामोत्पादक दृश्यों के अवलोकन से पांडु को कामलिप्सा जागी। यहां-वहां कामक्रीड़ा करने के बाद एक लता मंडल में उन्होंने कामक्रीड़ा की। इसके पश्चात् पांडु ने वहीं एक हिरण युगल को कामरत देखा। अनायास ही पांडु ने बाण से हिरण को मार दिया। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे कुमार! तुमने मूक प्राणी का अकारण बध कर ठीक नहीं किया। यदि आप ही इन्हें मारेंगे, तो इनकी रक्षा कौन करेगा? हिंसा से सुख की आशा करना दुराशा भात्र है। यह आकाशवाणी
संक्षिप्त जैन महाभारत.53