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का विवाह कंस से कर दिया। कंस ने पूर्व बैर वश जरासंध से मथुरा का राज्य भी घोषणानुसार मांग लिया । कंस का पिता उग्रसेन मथुरा का शासक था। फिर भी जरासंध ने कंस को मथुरा का राज्य दे दिया। कंस ने यह सोचकर कि मेरे पिता ने ही मुझे यमुना में बहाया था; अतः राज्य प्राप्त करते ही उसने अपने पिता उग्रसेन व उनकी महारानी को बंदी बना लिया व नगर के मुख्य द्वार गोपुर के ऊपर उन्हें कैद कर लिया। कंस ने वसुदेव के उपकार का बदला चुकाने के लिए वसुदेव को मथुरा बुलाया व बड़ी विभूति के साथ राज-सम्मान देकर गुरु दक्षिणा स्वरूप अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ करा दिया। देवकी उग्रसेन के भाई देवसेन की पुत्री थी।
कंस के शासन में एक बार कंस के बड़े भाई अतिमुक्तक नाम के मुनि आहार के समय कंस के महल में पधारे। तब कंस की पत्नी जीवद्यसा ने हंसी करते हुए राजमद में चूर होकर उन मुनिराज से कहा कि यह देवकी का ऋतुकाल का वस्त्र है, इससे आपकी छोटी बहन अपनी चेष्टा आपके लिए दिखला रही हैं। तब मुनिराज ने वचन गुप्ति छोड़ते हुए जीवद्यसा से कहा कि देवकी पुत्र ही तेरे पति को मारेगा। यह सुनकर जीवद्यसा को क्रोध आने पर मुनिराज ने आगे कहा कि न केवल वो तेरे पति को, बल्कि तेरे पिता को भी मारेगा और वह समुद्रांत पृथ्वी रूपी स्त्री का पालन भी करेगा। यह कहकर मुनिराज तो वापिस चले गये पर भयभीत व आगत डर से कांपती हुई जीवद्यसा कंस के पास गई व उन्हें मुनि द्वारा कहे वचन बतलाये। तब कंस यह सोचकर कि मुनि वचन कभी मिथ्या नहीं होते, डर गया। उसे वसुदेव द्वारा दिये गये धरोहर वचन याद आये। वह वसुदेव के पास पहुँचा व वसुदेव से धरोहर वचन मांगने लगा कि प्रसूति के समय देवकी का निवास मेरे महलों में ही रहेगा। वसुदेव ने तुरंत यह वचन कंस को दे दिया। पर बाद में सही बात मालूम चलने पर वसुदेव उन्हीं मुनिराज के पास गये व पूछा कि मेरा पुत्र कंस का विघाती क्यों और कैसे होगा? तब मुनिराज ने
संक्षिप्त जैन महाभारत 45