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कामदेव के मंदिर में पहुँचे जहां के कपाट कई दिनों से बंद रहते थे। वहां उपस्थित जनों ने वसुदेव को बताया कि जो भी इस मंदिर के कपाट खोलकर इसमें पूजा करेगा, उसका विवाह नगर सेठ की कन्या बंधुमति से कर दिया जायेगा। तब वसुदेव ने उस मंदिर के बंद कपाट खोलकर उसमें पूजा की। यह देखकर नगर सेठ ने अपनी कन्या बंधुमति का विवाह वसुदेव से कर दिया। उसी नगर के राजा के यहां प्रियंगुसुन्दरी नाम की सुन्दर कन्या थी। ज्वलनप्रभा नाम की नागकन्या ने वसुदेव को उस सुन्दरी के गुणों व रुप की प्रशंसा कर वसुदेव के मन में उस कन्या के प्रति प्रेम जागृत कर दिया। तब उन दोनों ने उसी कामदेव के मंदिर में जाकर परस्पर गंधर्व विवाह कर लिया। यहां वसुदेव अपनी दोनों पत्नियों के साथ अनेक वर्षों तक रहे।
बाद में वसुदेव ने गांधार देश के नगर गंधसमृद्ध में प्रवेश किया; यहां भी अपने बुद्धि कौशल के आधार पर गांधार नरेश गंधार व उनकी महारानी पृथ्वी से उत्पन्न पुत्री प्रभावती के साथ विवाह किया। एक दिन वसुदेव व प्रभावती महलों में सो रहे थे, तभी बैरी शूर्पक वसुदेव को ले उड़ा; किन्तु वसुदेव के मुक्कों की मार से भयभीत होकर उन्हें हवा में ही छोड़ दिया; जिससे वसुदेव गोदावरी के कुंड में आकर गिरे। वे यहां से कुंडपुर ग्राम गये; जहां का राजा पदमरथ था। यहां भी वसुदेव ने अपने कला कौशल से वहां के राजा की सुन्दर कन्या से विवाह किया। किन्तु दुर्भाग्य ने यहां भी वसुदेव का पीछा नहीं छोड़ा। अब की बार नीलकंठ ने वसुदेव का हरण कर लिया पर वे उससे बचकर चंपानगरी के तालाब में गिरे। फिर वहां के मंत्री की पुत्री से विवाह किया। पर यहां से बैरी शूर्पक फिर उन्हें हर ले गया, पर अब वे उससे युद्ध करते हुए भागीरथी नदी में गिर गये ।
वहां मलेच्क्ष रहते थे वे वसुदेव को पकड़कर मलेच्क्ष राजा के पास ले गये। किंतु मलेच्छ राजा ने उसे अपनी कन्या भेंट में दे दी। यही मलेच्छ कन्या से वसुदेव को जरत कुमार नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई। यहीं पर वसुदेव ने अवंति,
संक्षिप्त जैन महाभारत 39