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धारण कर वे नगर में गये; जहां चारुदत्त सेठ की पुत्री गंधर्व सेना को गंधर्व संगीत में परास्त कर उन्होंने उससे विवाह कर लिया।
फिर एक बार बेताल कन्या वसुदेव को रात्रि में हरण कर श्मशान ले गई; फिर उन्हें स्नान कराकर उत्तमोत्तम आभूषण पहनाकर नीलेश्या के पिता सिंहदृष्टा-जो असित नगर पर्वत के स्वामी थे-के पास ले गई व नीलेश्या से वसुदेव का पाणिग्रहण संस्कार कराया। एक बार एक मयूर नीलेश्या को हर ले गया। तब वसुदेव गोपों की बस्ती में गये। उस बस्ती का नाम गिरि तट था। वहां वासुदेव नाम का ब्राह्मण व उसकी पुत्र सोमश्री रहती थी। दोनों ही वेदों में अति निपुण थे। एक बार कभी ज्योतिषी ने कहा था कि जो सोमश्री को वेदों की चर्चा में जीत लेगा; वही उसका पति होगा। वसुदेव ने यह काम कर दिखाया व सोमश्री को अपनी पत्नी बना लिया। ___एक बार जब वसुदेव गिरितट नगर के उद्यान में विद्या सिद्ध कर रहे थे, तभी कुछ धूर्त उन्हें पालकी में बिठाकर तिलवस्तु नगर ले गये। वहां के लोग एक नरभक्षी राक्षस से परेशान थे। उस राक्षस का सामना जब वसुदेव से हुआ; तो वसुदेव ने उसे परास्त कर दिया। यह देखकर प्रजा अति प्रसन्न हुई। फिर वहां की प्रजा वसुदेव को रथ पर बिठाकर अपने नगर ले गई और खुशी-खुशी 500 कन्याओं का विवाह वसुदेव से करा दिया। एक बार मदनवेगा के पिता जो नरेश थे; उनको उनका दुश्मन राजा त्रिशिखर परास्त कर ले गया व उन्हें बंदी बना लिया। वसुदेव ने त्रिशिखर को परास्त कर व बाद में उसका वध कर मदनवेगा के पिता को मुक्त करा लिया। तब मदनवेगा के पिता ने अपनी पुत्रियों वेगवती व मदनवेगा का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया। बाद में मदनवेगा ने-जो विद्याओं में निपुण थी-वसुदेव को विद्याधरों के प्रकार बतलाये। वसुदेव व मदनवेगा से अनावृष्टि नाम का पुत्र हुआ। __एक बार त्रिशिखर विद्याधर की विधवा पत्नी शूर्पणखी मदनवेगा का रूप धारण कर वसुदेव के पास गई व छलपूर्वक
संक्षिप्त जैन महाभारत - 37