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हैं, अतः मैं उन्हें अवश्य पूर्ण करूंगा, क्योंकि दान देने से सुख की प्राप्ति होती है। राजा बलि की स्वीकारोक्ति पर मुनि श्री विष्णुकुमार से वामन बने ब्राह्मण ने राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। तब सभी उपस्थित जनों ने उस वामन ब्राह्मण से कहा- बली नरेश बहुत दानी हैं, आप और भी कुछ मांग लीजिए।
तब उस वामन रूपी ब्राह्मण ने कहा-व्यर्थ की प्रशंसा से उद्देश्य सिद्ध नहीं होता, अतः बलि नरेश तुम संकल्प जल लेने को तैयार हो जाओ। तब अस्थाई राजा बलि ने संकल्प पूर्वक कहा- मैंने आपको तीन पग जमीन दान में दी। तब विष्णु कुमार मुनि श्री (वामन) ने विक्रिया ऋद्धि से अपना शरीर इतना विशाल बना लिया कि उससे सारा संसार घिर गया। उनका यह रूप देखकर सभी उपस्थित जन विस्मत हो गये। तब उन्होंने एक पग सुमेरू पर्वत पर रखा, दूसरे पग को मानुषोत्तर पर्वत पर रखा। इससे सारे संसार में त्राहि-त्राहि मच गई। तब सुर, असुर, नारद आदि सभी मुनि श्री से प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु घोर अनर्थ हो जायेगा। आपके पद चाप से समस्त पृथ्वी कंपायमान हो रही है, कृपया कर अपने पैर समेट लें व सृष्टि की सर्वनाश से रक्षा करें। चामर जाति के देव भी वीणा से मुनि श्री को प्रसन्न करने की चेष्टा करने लगे। तब दो पैर धरती पर रखने के बाद मुनि श्री ने बलि राजा से पूछा-हे राजन्! आपने प्रसन्न होकर तीन पग जमीन दान में दी थी, किन्तु अब मैं तीसरा पग कहां रखें। जब राजा बलि कोई उत्तर न दे सका, तो मुनि विष्णुकुमार ने उन्हें बंदी बना लिया व मुनि संघ पर हो रहे अन्याय व अत्याचार को समाप्त कर दिया। इस प्रकार उन्होंने समस्त मुनि संघ की रक्षा की। तब राजा बलि ने अपने कुकृत्य पर पश्चाताप कर मुनि श्री से क्षमा याचना की व अधर्म से विमुख होकर धर्ममुखी हो जैनधर्म धारण कर लिया। तब मुनि श्री, बलि के मन में धर्म का संचार कर अपने स्थान को वापिस लौट गये। यह घटना श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को घटित हुई थी। इस कारण तभी से इस दिन को हम सभी रक्षाबंधन
22 - संक्षिप्त जैन महाभारत