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वहां से उठाकर चंपापुर नगरी लाया व वहां के नरेश की मृत्यु हो जाने व उनके कोई संतान न होने से उन्हें वहां का महाराजा व महारानी मनोनीत कर दिया। उन दोनों से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम हरि रखा गया। यह तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी के धर्मतीर्थंकाल की बात है। यही राजा हरि हरिवंश की उत्पत्ति के प्रथम कारण बने। महाराजा हरि के महागिरि नाम का पुत्र हुआ, जो बाद में वहां का शासक बना। तत्पश्चात् इस हरिवंश में हिमगिरि, बसुगिरि, गिरि आदि सैंकड़ों नरेश हुए।
इसी हरिवंश में मगध देश के स्वामी महाराज समित्र हुए। वे धर्मात्मा व न्यायप्रिय थे। आप इस देश के कुसाग्रपुर नगर के अधिपति थे। रानी पदमावती जो एक महान धर्मपरायणा स्त्री थी, आपकी पत्नी व महारानी थीं। उन्हीं के यहां दैवीय रत्नों की वृष्टि 15 माह तक होती रही। पश्चात् महारानी पद्मावती ने माघ कृष्ण 12 को श्रवण नक्षत्र में एक तीर्थंकर बालक को जन्म दिया। इन्द्र ने देवी-देवताओं के साथ आकर सुमेरू पर्वत पर ले जाकर उनका भक्तिभाव पूर्वक 1008 कलशों से अभिषेक कर उनका जन्मोत्व मनाया व तीर्थंकर बालक का नाम मुनिसुब्रतनाथ रखा। आप हरिवंश रूपी आकाश के सूर्य थे। आप महाराजा बने, किन्तु एक दिवस आकाश में विशाल मेघसमूह के विलोपन को देखकर इस संसार से विरक्त हो गये व मुनि दीक्षा धारण कर ली। तपबल से समस्त घातिया कर्मों का नाश कर आपने केवलज्ञान प्राप्त किया व जन-जन के कल्याण हेतु समवशरण सभा में विराजमान होकर धर्मोपदेश दिया व अंत में सम्मेदाचल पर्वत पर पधार कर समस्त कर्मों का नाश कर वहीं से आपने मोक्षलक्ष्मी का वरण किया। कुशाग्रपुर नगर को वर्तमान में राजगृही के नाम से जाना जाता है।
आपके दीक्षा लेने के पश्चात् आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री सुव्रत हरिवंश के स्वामी हुए। सुव्रत नरेश के यहां भी एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ। जिसका नाम दक्ष रखा गया। दक्ष नरेश के यहां इला नाम की महारानी के गर्भ से ऐलेय नाम
26 - संक्षिप्त जैन महाभारत