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नाम का नगर बसाया । अमर के बाद क्रमशः देवदत्त, मिथिलानाथ, हरिषेण, नभसेन, शंख, भद्र, अभिचंद्र आदि वहां के राजा बने। अभिचंद्र ने विंध्याचल के ऊपर चेदि राष्ट्र की स्थापना की व शुक्तिमती नदी के किनारे इसी नाम की नगरी भी बसायी । अभिचंद्र की महारानी का नाम वसुमति था। जिनसे वसु नाम का पुत्र हुआ।
इसी नगरी में क्षीरकदंब नाम का ब्राह्मण रहता था। जो शास्त्रों का महान ज्ञाता था । क्षीरकदंब की स्त्री का नाम स्वस्तिमति था । इनके पर्वत नाम का एक पुत्र था । क्षीरकदंब ने नरेश पुत्र वसु, स्वपुत्र पर्वत एवं नारद को गूढार्थ सहित सभी शास्त्र पढ़ाये। एक बार वे इन्हें आरण्यक वेद पढ़ा रहे थे; तभी आकाश में गमन करते हुए चारण ऋद्धिधारी मुनियों ने कहा कि इनमें से दो अधोगति को व दो उर्ध्वगति को प्राप्त होंगे। मुनियों के ये वचन सुनकर क्षीरकदंब ने शिष्यों से अपने-अपने घर जाने को कहा व स्वयं मुनि बनकर तपस्या व मनन चिंतन करने लगे। अपने पति के घर न आने से व्याकुल स्वस्तिमति ने पर्वत व नारद को उन्हें खोजने भेजा। अनेक दिनों के प्रयास के बाद वे नारद व पर्वत को एक वन में मुनिवेष में ध्यानरत मिले। उन्होंने वापिस आकर यह समाचार गुरु माता को बतलाया। इसके बाद नारद ने क्षीरकंदब मुनि महाराज से अणुव्रत ग्रहण कर लिये । राजा अभिचंद्र भी अपने पुत्र बसु को राज्य का भार सौंप कर मुनि बन गये।
राजा बसु सत्यवादी व न्यायप्रिय थे व आकाश स्फटिक पर ही बैठते व चलते थे। राजा बसु की एक रानी इक्ष्वाकु वंश व दूसरी रानी कुरुवंश की थी। इन दोनों से राजा बसु के 10 पुत्र हुए थे। एक दिन नारद अपने गुरु के पुत्र पर्वत से मिलने आये। वे गुरु पत्नी से भी मिले। उस समय पर्वत अपने अनेक शिष्यों से घिरा वेद वाक्यों की व्याख्या कर रहा था। उसने बोला- 'अजैर्यश्टव्यमं'। इसमें अज शब्द आया है। 'अज' याने बकरा अर्थात् बकरे से ही यज्ञ करना चाहिए। तभी वहां उपस्थित नारद ने अज्ञानी पर्वत के उक्त अर्थ पर
28 संक्षिप्त जैन महाभारत