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के पर्व के रूप में मनाते हैं। हरिवंश पुराण में भी लगभग ऐसी ही कथा का वर्णन है।
राजा पद्मरथ के बाद कुरूवंश में महाराजा पद्मनाभ, महापदम, सुपद्म, कीर्ति, सुकीर्ति, बसुकीर्ति, बासुकी आदि अनेक महाराजा हुए। इसके पश्चात् महाशक्तिशाली नरेश शांतनु कुरूवंश में हस्तिनापुर के राजा हुए। इनकी धर्मप्रिया रानी का नाम सबकी था। इन दोनों के महापराक्रमी पाराशर नाम का पुत्र था। पाराशर की शादी रत्नपुर नरेश जीमजहु विधाधर की पुत्री गंगा से हुई थी। पाराशर गंगा से गांगेय नाम के पुत्र ने जन्म लिया। गांगेय ने अल्पवय में ही समस्त विद्यायें सीख ली थी। एक बार पाराशर नरेश यमुना तट पर गये, जहां वे एक धीवर प्रमुख की कन्या गुणवती पर मोहित हो गये। तब राजन उस मल्लाहों के मुखिया के पास गये व उससे उन्होंने गुणवती की याचना की। यह सुनकर धीवर प्रमुख ने कहा कि हे राजन, आपके पहले ही गांगेय नाम का सुन्दर बालक है, वह सभी विद्याओं में प्रवीण है, अतः आप राज्य का उत्तराधिकारी तो उसे ही बनायेंगे, फिर मेरी पुत्री से जन्में-पुत्रों का भविष्य क्या होगा। यह सुनकर राजा पाराशर वापिस लौट गये व चिंतित रहने लगे।
तब एक वयोवृद्ध मंत्री से अपने पिता की चिंता का राज जानकर गांगेय उस धीवर के घर गये व कहा कि आपने मेरे पिता को दुखित कर अच्छा नहीं किया। तब धीवर ने विनम्रता पूर्वक कहा कि हे राजकुमार! जो मनुष्य अपनी कन्या को उसके सौत के पुत्र की माता बनने के लिए किसी को सौंपता है, वह कन्या को बलात कुंये में धकेलता है। यह सुनकर राजपुत्र गांगेय ने कहा, हे धीवरराज! ये आपका भ्रम है। मैं कुरूकुल का हूँ। उत्तम गुणों के लिए यह कुल संसार में प्रसिद्ध है। आप विश्वास रखें-मेरे कारण आपकी पुत्री से उत्पन्न पुत्र को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। मैं गुणवती को अपनी माता गंगा से भी अधिक सत्कार दूंगा। मैं आपके सामने प्रतिज्ञा करता हूँ कि आपकी पुत्री के पुत्र को ही राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त होगा। .
संक्षिप्त जैन महाभारत - 23