________________
बाकी, आत्मा तो सदा ब्रह्मचर्यवाला ही है। आत्मा ने विषय कभी भोगा ही नहीं। आत्मा सूक्ष्मतम है और विषय स्थूल है। इसलिए स्थूल को सूक्ष्म भोग ही नहीं सकता!
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि, 'इस ज्ञान के बाद मुझे कभी विषय का विचार तक नहीं आया!' तभी तो ऐसी विषय रोग को उखाड़कर खत्म कर देनेवाली वाणी निकली है!
२. विकारों से विमुक्ति की राह अक्रम मार्ग में विकारी पद है ही नहीं। जैसे पुलिसवाला पकड़कर करवाए, उस तरह का होता है। स्वतंत्र मर्जी से नहीं होता। जहाँ विषय है, वहाँ पर धर्म नहीं है। निर्विकार रहे, वहीं पर धर्म है! किसी भी धर्म ने विकार को स्वीकार नहीं किया है। हाँ, कोई वाम मार्गी हो सकता
ब्रह्मचर्य, वह तो पिछले जन्म की भावना के परिणाम स्वरूप किसी महा-महा पुण्यशाली महात्मा को प्राप्त होता है। बाकी सामान्यतः तो जगह-जगह अब्रह्मचर्य ही देखने मिलता है! जिसे भौतिक सुखों की वांछना है, उसे तो शादी कर ही लेनी चाहिए और जिसे भौतिक नहीं लेकिन सनातन सुख ही चाहिए, उसे शादी नहीं करनी चाहिए। उसे मनवचन-काया से ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए।
भगवान को प्राप्त करने के लिए विकारमुक्त होना पड़ेगा और विकारमक्त होने के लिए क्या संसारमुक्त होना पड़ेगा? नहीं। मन तो, अगर जंगल में जाएँ तो भी साथ में ही जाएगा! क्या वह छोड़नेवाला है? यदि ज्ञानीपुरुष मिल जाएँ तो आसानी से निर्विकार रहा जा सकता है।
तृष्णा, उसे कहते हैं कि जो भोगने से बढ़ती ही जाए और नहीं भोगने से मिट जाए! इसीलिए ब्रह्मचर्य की खोज हुई है न, विकारों से मुक्त होने के लिए!
विषयी कौन है? इन्द्रियाँ या अंत:करण? भैंस कौन और चरवाहा कौन? सामान्यतः इन्द्रियों का दोष माना जाता है! नसबंदी करवाने से कहीं विषय छूटता है? तेरी नीयत कैसी है विषय में? चोर नीयत की
18