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मानकर गा
प्रवचनसारः
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न्तमध्यस्थो भूत्वा सकलपुरुषार्थसारतया नितान्तमात्मनो हिततमां भगवत्पंचपरमेष्ठिप्रसादोप
होता है । (४) स्वतंत्र स्वस्वसत्तामात्र पदार्थों का परिचय होनेसे मोहान्धकार नष्ट हो जाता है ) ( ५ ) मोहान्धकार नष्ट होनेपर उत्कृष्ट प्रात्मतत्त्व में आदर होता है । सहजपरमात्मतत्त्व की उपासना से परमकाष्ठाप्राप्त ज्ञान और आनन्द प्रकट होता है ।
सिद्धान्त - ( १ ) अनेकान्तमय तेजसे वस्तुका यथार्थ ज्ञान होता है ।
दृष्टि - ( १ ) सकलादेशी स्याद्वाद ।
प्रयोग -- स्याद्वाद से वस्तुनिर्णय करके मोह ग्रज्ञान नष्ट कर स्व सहज ज्ञानानन्दको जयवंत करना ।
परमानन्द इत्यादि - - श्रर्थ- उत्कृष्ट प्रानन्दरूपी अमृतरसके प्यासे भव्य जीवोंके हित के लिये वस्तुस्वरूपको प्रकट करने वाली प्रवचनसारकी यह वृत्ति अर्थात् टीका की जा रही है । भावार्थ - प्रवचनसारकी यह टीका यथार्थ स्वरूपको प्रकट करने वाली होनेसे भव्य जीवों को परम आनन्द देने वाली है ।
प्रसंगविवरण - पूर्व छंद में अनेकान्तमय तेजका, वस्तुस्वरूपको प्रकाशनेका तथ्य बता कर जयवाद किया था। अब उसी अनेकान्तविधिसे तत्त्वको प्रकट करने वाली प्रवचनसारकी टीका रची जानेका लक्ष्य बताया गया है ।
तथ्यप्रकाश
- (१) स्वस्वद्रव्यगुरणपर्यायमय वस्तुका परिज्ञान होनेसे पर वस्तुके प्रति आकर्षण नहीं रहता है । ( २ ) परवस्तुके प्रति ग्राकर्षण नष्ट हो जानेपर ग्रात्मवस्तुकी अभि मुखता होती है । ( ३ ) ग्रात्मतत्त्व के प्रभिमुख जीवको प्रात्मत्वके श्राश्रयसे परम आनन्द प्रकट होता है । ( ४ ) परमानन्दसुधारस के प्यासे भव्य जीवों के हितके लिये यह टीका रची जा रही
है ।
सिद्धान्त - - ( १ ) किसीकी रचनासे अन्य कोई लाभ उठाये तो वहाँ उसके लिये रचना की जानेका व्यवहार होता है ।
दृष्टि - १ - परसंप्रदानत्व ग्रसद्भूत व्यवहार (१३२) ।
प्रयोग - प्रवचनसार ग्रन्थ व उसकी टीकाका स्वाध्याय अपनेपर तथ्यको घटित करते हुए करना और श्रात्मीय आनन्दसे तृप्त होने की वृत्ति बनाना ।
श्रथ इत्यादि । अर्थ- - अब निकट है संसारसमुद्रका किनारा जिसका प्रकट हो गई है सातिशय विवेक ज्योति जिसकी, नष्ट हो गया है समस्त एकान्तवादविद्याका आग्रह जिसके ऐसा कोई महापुरुष (श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव ) परमेश्वर जिनेन्द्रदेवकी अनेकान्तवादविद्याको