Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 16
________________ सहजानन्दशास्त्रमालायां अथ खलु कश्चिदासनसंसारपारावारः समुन्मीलितसातिशयविवेकज्योतिरस्तमितसमस्तैकान्तवादविद्याभिनिवेशः पारमेश्वरीमनेकान्तवादविद्यामुपगम्य मुक्तसमस्तपक्षपरिग्रहतयात्य HERE - - चंद्रजी सूरिके द्वारा ज्ञानानन्दप्ररूपक ग्रंथके प्रारम्भमें ज्ञानानन्दात्मक प्रात्माके उत्कृष्ट सहज स्वरूपको नमस्कार किया गया है । तथ्यप्रकाश-(१) परम प्रात्मपदार्थ एक चैतन्यस्वरूपमय है । (२) यह एक चैतन्य स्वरूप प्रात्माके सब गुण पर्यायोंमें व्यापक है । (३) परम आत्मपदार्थ अपने सहज स्वरूपके अनुभवसे सुपरिचित होता है। (४) परम आत्मपदार्थ ज्ञानानन्दात्मक है । (५) परमात्मा ज्ञान द्वारा लोकालोकमें सर्वत्र व्यापक है तो भी वह एक चैतन्यस्वरूपमात्र है, अपने प्रात्मप्रदेशोंमें ही परिसमाप्त है । (६) परमात्मा अात्मस्वभावके अनुरूप हो पूर्ण विकसित है अतः आत्मस्वभावके परिज्ञानसे हो परमात्माका परिचय होता है । (७) परमात्मा उत्कृष्ट ज्ञानमय और उत्कृष्ट प्रानन्दमय है । सिद्धान्त-(१) ज्ञानमुखेन सर्वज्ञेयवर्ती प्रात्माका परिचय होता है । (२) प्रात्माके सब गुरण पर्यायोंमें व्यापक एक चैतन्यस्वरूप है । (३) स्वरूपकी उपलब्धिसे परमात्मपदार्थकी प्रकृष्ट सिद्धि होती है । (४) परमात्माका स्वरूप परमकाष्ठाप्राप्त ज्ञानानन्द है । (५) आत्मा का सहज स्वरूप सहज ज्ञानानन्दस्वभाव है । दृष्टि--(१) सर्वगतनय [१७२] । (२) सामान्य नय [१६७] । (३) पुमषकारनय [१८३] । (४) शुद्धनिश्चयनय [४६] । (५) परमशुद्धनिश्चयनय [४४-४५] । प्रयोग-सहज ज्ञानानन्दमय स्वरूपको दृष्टि करके इस अद्वैतनमस्कारके प्रसादसे शरण्य सहजपरमात्मतत्त्वको अपने में प्रसिद्धि करना । हेलोल्लुप्त इत्यादि--अर्थ---लीलामात्रमें नष्ट किया है महामोहरूपी अन्धकार जिसने ऐसा यह अनेकान्तमय तेज जगत्स्वरूपको प्रकाशित करता हुअा जयवंत होता है । भावार्थअनेकान्त दृष्टिसे प्रकाश करने वाला ज्ञान यथार्थ वस्तुस्वरूपको जताता है जिससे गहन मोहान्धकार सुगमतया नष्ट हो जाता है । __ प्रसंगविवरण-पूर्व मंगलाचरण छन्दमें ज्ञानानन्दात्मक उत्कृष्ट प्रात्मतत्त्वको नमस्कार किया था । अब अज्ञानान्धकारको दूर कर उस आत्मतत्त्वका परिचय कराने वाले अने. कान्तमय तेजका जयवाद किया है । तथ्यप्रकाश-(१) वस्तु अनेकधर्मात्मक है। (२) वस्तुके अनेक धर्मोंका परिज्ञान अनेक दृष्टियोंसे होता है । (३) अनेक दृष्टियोंसे अनेक धर्मोका परिचय होनेसे वस्तुका बोध

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