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द्वितीय अध्याय : १७ ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि नंदन-मणिकार ने राजा श्रेणिक को धन भेंट करके पुष्करिणी बनाने की आज्ञा प्राप्त की थी। वसुदेवहिण्डी में नगर के बाहर ऐसे खेतों का वर्णन है जिन्हें राजा ने कृषकों को कृषि के लिये दिया था। जो किसान खेतों को हानि पहुँचाते थे, उन्हें अपना घोषित करते थे, उन्हें दण्डित करके दण्ड के रूप में प्राप्त धन राजकोष में जमा कर दिया जाता था। यद्यपि राजा भूमि का पूर्ण स्वामी था तथापि उसका अधिकार केवल भूमि की उपज के निश्चित भाग तक ही सीमित था। व्यक्तिगत स्वामित्व
राज्य में राजकीय सम्पदा के अतिरिक्त निजी सम्पदा भी होती थी। प्रश्नव्याकरण के अनुसार ऐसी सम्पदा में धन, धान्य, खेत, घर, दासदासी और पशु की गणना की जाती थी।३ इच्छा परिमाण व्रत के पाँच अतिचारों ( दोषों ) में एक क्षेत्र-वास्तु परिमाणातिक्रमण था । खेत और गृह के परिमाण से भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व की पुष्टि होती है। जैन साहित्य के कुछ संदर्भो से ज्ञात होता है कि गाथापति और धनिकों के पास पर्याप्त भूमि हुआ करती थी जैसे उपासकदशांग के अनुसार आनन्द गाथापति ५०० हल भूमि का स्वामी था। ग्रामों की कृषि योग्य भूमि में किसानों की व्यक्तिगत पट्टियां होती थीं। जिनको एक दूसरे से अलग करने के लिये सीमा-चिह्न या सिंचाई की नालियां होती थीं। व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि एक किसान ने अपने खेतों पर इस प्रकार जुताई कर दी कि उसके सीमा-चिह्न ही मिट गये।६ मनुस्मृति में भी कृषिकर्म वैश्यों का धर्म बताया गया है। अतः उनके पास १. ज्ञाताधर्मकथांग १३/१५ २. एते नगरस्य बहिया सुत्तविभत्ता एयाणि जणस्स नयरवासिणो खेत्ताणि
आजीविओसहिसं पाइणणिमित्तं"ताणि अम्हं खेत्ताणि । "त्ति वुच्चति... ततो ते विणयत्थंदण्डो दोसानुरूवो । सो अम्हं कोसं पविसइ,-वसुदेवहिण्डी
भाग १ पृ० ९१. ३. हिरणसुवण्णखेत्तवत्थु, णदासी-दास-भयग-पेस-हय-गय, गवेलगंव,-प्रश्नव्या___करण २/५/१५६; बृहत्कल्पभाष्य २/८२५; आवश्यकचूणि २/२९२. ४. खेत्तवत्थुविहि परिमाणं करेइ-उपासकदशांग १/पृ० २७. ५. पंचहिं हलसएहिं नियत्तणसइएणं हलेणं, वही, १/पृ० २७. ६. व्यवहारभाष्य, भाग ७/४४३.