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तृतीय अध्याय : ६७ सेना में हस्तिसेना का बड़ा महत्त्व था। सोमदेव के अनुसार राजाओं की विजय और शत्रु का संहार हस्तियों पर निर्भर करता था। दुर्गमपथ भी गजों के लिये सुगम होते थे । घाटरहित नदियों को भी हाथी सुगमता से पार कर लेते थे ।' कौटिल्य ने भी युद्ध हेतु हाथियों के महत्त्व को स्वीकार किया था । जंगल में हाथियों को पकड़ा जाता था उन्हें पकड़ने की विधि का वर्णन पिंड नियुक्ति में मिलता है। उनके आवागमन के मार्गों पर गड्ढे खोदकर उन्हें घास-पात से आच्छादित किया जाता था । घूमते हुये हाथी उसमें गिर जाते थे और इसप्रकार बांध लिये जाते थे। हथिनी को एक स्थान पर बांधकर भी जंगली हाथियों को आकृष्ट किया जाता था। जंगली हाथियों को पकड़कर उन्हें शिक्षित करने के उल्लेख आये हैं। हाथी को पहले सूड से लकड़ी पकड़ने का अभ्यास कराया जाता था । फिर छोटे पत्थर, फिर गोली और अन्त में सरसों पकड़ने का अभ्यास कराया जाता था ।५
ऊंट भो पोषित पशु थे । ये भार ढोने और सवारी के काम आते थे । निशीथचूणि में एक उष्ट्रपाल के पास इक्कीस ऊंट होने का उल्लेख है । आचारांग से ज्ञात होता है कि ऊँट के बालों से वस्त्र भी बनाये जाते थे। ___ गधों की गणना भी पोषित पशुओं में थी। ये मुख्य रूप से भार ढोने के काम में लाये जाते थे। बृहत्कल्पभाष्य में एक कुम्हार द्वारा गधे पर बर्तन लादकर दूसरे स्थान पर ले जाने का उल्लेख है, परन्तु अधिक भार होने के कारण उस थके, ऋद्ध गधे ने कुम्हार के सब बर्तनों को तोड़ दिया।
चमड़े और मांस प्राप्ति के लिये भी पशुओं का पालन किया जाता था । जंगली जानवरों के शिकार हेतु कुत्तों की सहायता ली जाती थी।
१. सोमदेवसूरि-नीतिवाक्यामृतम् २२/३१ २. कौटिलीय अर्थशास्त्र २१२ २० ३. पिंडनियुक्ति गाथा ८३ ४. कौटिलीय अर्थशास्त्र २ ३२/४८ ५. बृहत्कल्पभाष्य भाग १, गाथा २३१ ६. निशीथचूणि भाग ३, गाथा ३६९७; बृहत्कल्पभाष्य भाग ५, गाथा ५२१७ ७. आचारांग २/५/१।१४१ ८. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १५२७